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________________ ( १३७ ) || परमपरमात्माना स्वरूपनं अवतरण ॥ आ दुनियामां अनादिकालथी रहेला अनंत जीव पदार्थो छे तेमज अनादी काली रहेला परमाणु आदि अजीव पढ़ार्थो पण छे. ते पदार्थोना यथार्थ स्वरूपनो प्रकाशक पुरुष कयो थाय अने ते केवी रीती उत्पन्न याय तेनुं किंचित्मात्र स्वरूप जणाaafने आ अवतरण करी बतावुं हुं. ते अंनत जीवोमांश्री गमे ते जीव, पोताना विशुद्ध चारित्रवडे अनेक भवोथी ( अनेक जन्मोथी ) पोताना आत्मानी शुद्धी मेळवतो मेळवतो, उत्तमोत्तमताना स्वरूपने प्राप्त थतो, छेवट पोताना मोक्षनी प्राप्तिना भवमां पण - राज्य, स्त्री, पुत्र, नादिक जे जे बाह्यपदार्थो आत्माने विकार करवा वाला छे. तैनाथी सर्वथा दूर रहने अर्थात् प्रत्रज्या ग्रहण करीने, रागद्वेष मोह अज्ञानादिक जे जे आत्मगुणोना घातक अंतरंगना महादूषणो छे तेमनो सर्वथा नाश करीने, प्राप्त र्क्यु छे-रूपी अरूपी सर्वचराऽचर पदार्थोनो प्रकाश करवावाळु केवलज्ञान, तेनीज साथे प्रगट थयुं छे - जगतना जीवोने उपदेश करवाना स्वरूपं तीर्थंकर नाम कर्म जेमने, ते परमात्मा पोते आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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