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________________ वेदनांज छे. अने बीजां पण वेदतुल्य ग्रंथोनांज छे. ज्यारे एवा ग्रंथोमांथी पण मुख्य वातोनुं सत्य न मली शके तो पछी बीजे कये ठेकाणेथी सत्य शोधी लाव ? माटे अमोने निश्चय थयो छे के जैनोना तीर्थकरोनी बरोबरी करवाने बीजो कोई पण पुरुष आज सुधी थएलो नथी अने तेमना कथन करेला तत्त्वग्रंथोने जोई-घणा एक तत्त्ववेत्ताओ स्तुति करवाने प्रेराएला छे. अने तेवा लेखोज आ पुस्तकमां अपाया छे. वली जुबो-जून १८९९ ना सुदर्शनमा आवेला-प्रो० आनंदशंकर बापु भाई ध्रुवेना उद्गारो-x “२ बौद्ध अने जैनधर्मनो पण विशालहृदयथी आ योजनामां समावेश करवो घटे छे. कारण के-ए धर्मोनो उपदेश मूलमां ब्रह्मधर्मने अंगेज थयो हतो अने ते ते समयमा प्रवर्त्तमान अनेक प्रकारना कचराने ब्राह्मधर्मना प्रवाहमांथी दूर करवाने ए धर्मो शक्तिमान थया छे ” विचार एटलोज के-ते तीर्थंकरो केवा उच्च गुणोंने धारण करवावाला हशे ! हवे मात्र तेमना टुंक गुणोना परिचयवाली एक महा कविए करेली स्तुतिने आ पुस्तकमां दाखल करी आ प्रयम भागनी समाप्ति करवाचं धारीये छे. - -- - x सेन्ट्रल हिंदु कॉलेज-बनारसना मथालाना लेखथी ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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