SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (८) न सही देशभाई ब्रह्मसमाजी आर्य्यसमाजी) देशवासी मूर्त्तिनिन्दा करने लगे हैं । सज्जनों ! बुद्धिमान् लोग जब गुणकी पूजा करते हैं तब जैसी हमारी पूज्यमूर्तियोंमें पूज्यताबुद्धि है वैसेही जहाँ पूजायोग्य गुण है वहाँ सर्वत्र पूजा करनी चाहिये । सज्जनों ! ज्ञान, वैराग्य, शान्ति, क्षान्ति, अदम्भ, अनीर्ष्या, अक्रोध, अमात्सर्य, अलोलुपता, शम, दम, अहिंसा, समदृष्टिता इत्यादि गुणोंमें एक एक गुण ऐसा है कि जहाँ वह पाया जाय वहाँ पर बुद्धिमान् पूजा करने लगते हैं तब तो जहाँ ये पूर्वोक्त सब गुण निरतिशयसीम होकर बिराजमान हैं उनकी पूजा न करना अथवा गुणपूजकोंकी पूजामें बाधा डालना क्या इनसानियतका कार्य है ? महाशय ! वैदिक जन ! अथवा मूर्तिपूजाविद्वेषि नूतनमजहबी सुजन जन ! जैनोंमें जिनका रथ प्रायः निकलता है वह किनका निकलता है ? आप जातने हैं ? वे महानुभाव हैं पारसनाथ स्वामी, महावीर स्वामी जिनदेव और ऐसेही ऐसे तीर्थकर तब तो उनकी पूजाका विरोध करना अथवा निन्दा करना यह अज्ञका कार्य नहीं है ? सुजनों ! आपने कभी यह श्लोक सुना है जिनमें पार्श्वनाथस्वामीके विषयमें कामदेव और उनकी पत्नीका सम्वाद है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy