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________________ तब किनकी मूर्ति रथमें बिराजती हैं ? सज्जनों ! देव गन्धर्वो से लेकर पशु पक्षि पर्यन्त जो पूजा की जाती है वह किसी मूर्तिकी ? अथवा मट्टी पत्थरकी ? नहीं की जाती है, जो ऐसा जानते हैं वे ऐसे अज्ञ हैं कि उन्हें जगत्में डेढ़ अकल मालुम होती है-याने एकमें आप स्वयं, आधीमें सब जगत्। क्या मूर्तिपूजक मूर्तिनिन्दकोंसे भी कम अकल हैं ? सज्जनों ! मूर्तिपूजा वह है कि जिसे मूर्तिनिन्दक नित्य करते हैं परन्तु यह नहीं जानते कि इस्में हमारी ही निन्दा होती है । देखिये ऐसा कौन देश, नगर, ग्राम, वन, उपवन है कि जहाँ पूज्य महारानी विक्टोरियाकी मूर्ति नहीं है और लोग उसे पवित्रभावसे पूजन नहीं करते ? । ठीक ही है। गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते । पदं हि सर्वत्र गुणैनिधीयते । जब उनमें ऐसे गुण थे तो उनकी पूजा कौन न करे । बस तो अब आपको ढोलकी पोल अवश्य ज्ञात हुई होगी, मिशनरीलोगोंकी मूर्तिपूजननिन्दा देख करही हमारे ( मजहबी १ मधे ठेकाणे गुणोनी पूजा थाय छे. जेने उंची पदवी मळे छे ते पण तेना गुणोथीज. सं० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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