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________________ (५०) केश अने हाथना नखोनें नियमन कर, ( काढी नांखवां) एम को छे. संन्यासना वखते जैनो पण केश विगेरे काढी नांखे छे. २३ तेणे बीज नाश करवो नहीं. आचारांगसूत्रना बीजा अध्ययनमां जैनयतिए इंडां, जीवता प्राणिओ, बीज विगैरेने पीडा न आपवा विषे अने अतिक्षद्र प्राणी अथवा वनस्पतिने पण पीडा न करवा विषे जैनयतिओनो घणो कटाक्ष छे. __ २४ कोई उपकार करो अथवा अपकार करो ते सर्वेनी साथे उदासीन पणे वत्तवं. २५ ऐहिक अथवा पारत्रिक कल्याण * विषे पण प्रयत्न करवो नहीं. छेवटना बे नियमो जैनग्रन्थोमां पण मळी आवे छे. कारण जैनधर्मनुं पण धोरण उपरला नियमोना धोरण प्रमाणेन छे. महावीरे उपरना बन्ने नियमोने अनुसरिनेन पोतानुं वर्तन राख्यु हतुं. चार महिना करतां वधारे कालसुधी नानाप्रकारना जीव, जन्तुओ तेना शरीर उपर चढता अने फरता, तेमने वेदना पण "उत्पन्न करता, तेमणे घास, ठंडी, पवन, अग्नि अने मच्छरो * इन्द्रियोना सुखने माटे Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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