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________________ (४९) करीने छोडी देवां. अने लोकोने एवा प्रकारचें कडकपणुं बतावी अमो ब्राह्मणो करतां श्रष्ठ छीए एम दर्शाव्यु.) बौद्धोए भूतदया तरफ पोता विशेष धोरण राख्यु. ___ २० वृक्ष, वल्ली विगेरेनी शाखाओ तेणे तोडवी नहीं. जैनोनुं व्रत एवाज प्रकारनुं छे पण तेमां एमना करतां वधारे एटळु छे के, जेमां अणुमात्र पण चतन्य न होय एवाज फलो अने वनस्पतिनुं भक्षण करवानी तेओने परवानगी छे. २१ पर्जन्यकालमां तेणे तेज गाममां बीजी रात्रे रहेवू नहीं. ननयतिओना नियमो गमे तेम होय पण महावीर ए नियम पाल्यो हतो. २२ तेणे माथा उपर नहानी चोटली राखवी अथवा बधुं मुंडन करावq. ए बाबतमा जनोए ब्राह्मणोथी खेंच करी छे. ते एवी छे के, जैन यतिओने केशलुचन करवू पडे छे. केशलुंचन एटले चपटीथी केश खची काढवां * (अज्ञानी माणसो उपर छाप बेसाडवा माटे आ युक्ति होवी जोईए) बौद्धायनस्मृतिमा ब्राह्मणे संन्यास लीयो एटले शरीर उपरना अने माथा उपरना * प्रथमतीर्थकर-ऋषभदेवथी चालतो आवेलो बारा प्रकारना तपमांनो भा पण एक तप छे, नहीं के छाप बेसाडवा माटे कल्पेलो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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