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________________ 3951 - ॥ ॐ ह्रीं अर्हम् श्री शङ्खश्वरपार्श्वनाथाय नमः ।। ॥ नमो नमः श्री गुरुनेमिसूरये ॥ ॥ अथ पद्मावती साधनविधि १ ॥ ः (१) स्तोक जलकृतः स्नानः । (२) शुद्धवस्त्रपरिधानम् । (३) भूमिशुद्धिः (पवित्र भूमि-लीपेली) । (४) सकलीकरण । (५) आत्मरक्षा | (६) हाँ बामकराड्गुष्ठे (अड्गुठाना अग्रभाग पर), ह्रीं तर्जन्यप्रे (तर्जनीना अग्रभाग पर), हूँ मध्यमायाम् (मध्यमाना अग्रभाग पर), द्रौं अनामिकायाम् (अनामिकाना अप्रभाग पर) द्वा कनिष्ठाये (कनिष्ठिकाना अग्रभाग पर) । " (७) ॐ नमो अरिहंताणं ड्राँ शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ नमो सिद्धाणं ह्रीं वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । [ શ્રી પાર્શ્વનાથોપસર્ગ-હારિણી ॐ नमो आयरियाणं हूँ हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ नमो उवज्झायाणं हो नाभि रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा । (८) दिग्बंधन (दिशाओ बंधन) कूटाक्षर 'क्ष' भी हाँ क्षीं हूँ क्षीं क्षः । (९) चितवन : स्वर्णनो किल्लो, वीश हाथ ऊंचो चतुष्कोण, अ थी अः सुधीना स्वरथी युक्त ह सहित । # (१०) किल्लानी बहार चारे तरफ खाई छे, निर्मल जलसहित अने भयंकर मत्स्य, मगर, काचबा आदि जलचरयुक्त छे अने ते अ थी अः सुधीना स्वरसहितना कूटाक्षर 'क्ष' सहित खाई चितवबी । (११) अग्निकुंडमां साधक पोताने जलता ॐकार अने 'र'कारथी बली(बळी) रहेलो विचारे । (१२) पछी ॐ अमृते ! अमृतोद्भवे ! अमृतवर्षिण ! अमृतं खावय याजय हुं फुट् स्वाहा ।। अथवा ॐ अमृते ! अमृतोद्भवे ! अमृतवर्षिणि ! अमृतं स्रावय यावय सं सं क्लीं क्लीं हूँ हूँ हाँ हाँ ह्रीं ह्रीँ द्रावय द्रावय ह्रीं स्वाहा || अमृतमंत्रथी मन्त्रस्नान करे । Jain Education International (१३) पोताना उत्तमांग (मस्तक) रूप मेरुपर्वत तेनी टोच शिखर पर क्षीरसमुद्रना जल वडे जिनेन्द्रचन्द्र (श्री पार्श्वनाथ) नो देवो अने देवेन्द्रो बड़े अभिषेक ( स्नात्र) कराय छे, तेना जल बड़े मा 'शरीर' पवित्र थइ रह्युं छे तेम चितवे । (१४) फल- प्रभाव भूत-ग्रह-शाकिन्यो ध्यानेनानेन नोपसर्पन्ति । अपहरति पूर्वसञ्चितमपि दुरितं त्वरितमेवेह || भूत, ग्रह, शाकिनी आदि आ ध्यानथी दूर थाय छे अने पूर्वसंचित अशुभ कर्मों पण दूर , थाय छे । (१५) पद्मासने पल्यङ्कासने बेसी, पोताने अने पूर्वादि आठे दिग्वधूने चन्दन वडे तिलक 'ॐ ह्रीं नमः' मन्त्र बोलीने तिलक करे । करे । (१६) पछी जेनी आराधना करवानी छे तेनुं ध्यान अने जप करे, 'आहवानादिपूर्वक' । (१७) पाश-फलद- वरद-गजवशकरण करा पद्मविष्टरा पद्या ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005139
Book TitleParshwanathopasargaharini Shasandevi Shree Padmavatimata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year1995
Total Pages688
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
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