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________________ प्रथम पुरुष अथवा अस्मद्-पुरुष हूं करडं ( हुं करूं छं ) लिडं (,, लउं छं ) दिउं (,, दउं छं ) बहु ० - अम्हे करउ - ( अमे करिए छिए ) भावेप्रयोग — देवदत्तई हुईअइ ( देवदत्तवडे होवाय छे-धवाय छे ) तई सुईअइ ( तारा वडे सुवाय छे ) मई बइसीअर ( मारा बडे बेसाय छे ) चौदमो अने पन्दरमो सैको बहु -0 75 कर्मणि प्रयोग — कीजइ ( कराय छे ) लीजइ ( लेवाय छे ) दीजइ (देवाय छे ) "" -कीजई ( घडा कराय छे ) लीजई ( घडा लेवाय छे ) दीजई (घडा देवाय छे ). રે Jain Education International तूं कीजं (तुं कराय छे ) हूं कीजउं ( हुं कराउं छं ) सेहि आवश्यकु पढिडं ( शैक्षे आवश्यक पढ्युं ) बहु ० - तुम्हे कीजउ ( तमे कराओ छो) देवदत्त वहिल जिमि पाछइ गाम जाइसि - ( देवदत्त वहेलुं जमी पछी गाम जाय छे - जशे ) विध्यादि अर्थ - करेवडं ( करवुं ) लेवउं (लेबुं ) देवडं ( देवुं ) तृतीय पुरुष बहु० - करिजो ( तेओ करे के करज्यो ) लेजो ( तेओ ल्ये के लेज्यो) देजो ( तेओ दे के देज्यो ) द्वितीय पुरुष तूं करिजे (-तुं करजे) लेजे (लेज्ये) देजे (देज्ये ) बहु० तुम्हे करिजो ( तमे करज्यो) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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