SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०६ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति (१६) व्यंजनादि प्रत्ययो लागतां नामनो अंतिम स्वर विकल्पे दीर्घ थाय छः देवसु, देवासु (१७) ८-४-३३५ त्रीजीना बहुवचननो प्रत्यय लागतां नामना अंतिम 'अ' नो विकल्पे 'ए' थाय छे : देवहिं देवाहिं, देवेहि (१८) ८-४-३४५ केटलाक प्रयोगोमां षष्ठी विभक्तिमां मूळ लुप्तविभक्ति नाम ज वपराय छे, जेमके; गय (गज-गजानाम् ) (१९) ८-४-४२२ संबंध बताववा माटे गमे ते पदनी पछी संबंधसूचक तण' अने 'केर' शब्दो पण वपराय छ : प्रत्ययो जसु-केरउं (जस-केरं-जेनुं) अम्हह-तणा ( अमतणा–अमारा) (२०) ८-४-४२५ ते माटे' एवो अर्थ बताववा सारु गमे ते पदनी पछी · केहिं', 'तेहिं ', 'रेसि', 'रेसिं', अने 'तणेण' ए पांचमांनो गमे ते एक शब्द मूकाय छे : तउ केहिं—(तारा माटे) अन्नहि रेसि-( अन्यने माटे) वडत्तणहो तणेण—( वडाईने माटे) सर्वादिशब्द (२१) सर्वादि शब्द. ८-४-३६६ साह । (सर्व) व० उ० सव्व सहु, सौ ८-४-३६५ औय (इदम् ) आ, आय २३० भाषाना सब (हिन्दी ) अने सउ के साउ ( गुजराती ) शब्दनी साथे प्रस्तुत 'सव्व' अने 'साह'नी सरखामणी सुघटमान छे. २३१ भाषानो 'आ' अने पारसीलोकमां बोलातो 'आय' ए बन्ने शब्दनी साथे प्रस्तुत 'आय' नुं विशेषतः साम्य छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy