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________________ आमुख TZOGJTCSIT एक भाषा-विशेषनो सूचक नथी, तो पण विशेषभाषारूप अपभ्रंशर्नु बीज ते भ्रष्ट उच्चारणोमां छे, एमां शक नथी. महाभाष्यकार पतंजलिए वापरेलो अपभ्रंश शब्द-ते, मात्र अशुद्ध के विकृत उच्चारणोनो सूचक छे. महाभाष्यकार कहे छे के, अने अपभ्रंशनो - कोई ब्राह्मणी पोतानी अशक्तिने लीधे 'ऋ' ने बदले सामान्य अर्थ 'ल' नुं उच्चारण करे छे. ते 'ऋतक' ने बदले 'लतक' बोले छे. ब्राह्मणीनुंए 'लतक' उच्चारण भ्रष्ट छे छतां ते भ्रष्ट 'लतक' ना 'ल' नो संधिकार्यमां उपयोग थाय माटे पण महेश्वरे “ऋलक्" सूत्रमा 'ल' नो उपदेश करेलो छे. ए रीते 'अपभ्रंश' शब्द सामान्य अशुद्धिनो-विकृतिनो सूचक हतो ते, वखत जतां, अमुक एक भाषानी अस्मितानुं प्राबल्य वधतां सर्वसाधारण अपभ्रंशनो एवी लोकभाषानो द्योतक थयो. अपभ्रंश पदनो विशेष अर्थ . साधारण एवो यौगिक अर्थ सर्वकाळे वैदिक के लौकिक संस्कृत वगेरे सर्व भाषा परत्वे विद्यमान होय छे. तेनो आदिकाळ के प्रारंभकाळ शोधी न शकाय. परंतु साहित्यमां वपराती भाषाविशेष परत्वे ' अपभ्रंश' शब्द क्यारथी रूढ रीते शरू थयो तेनो ऊहापोह जरूर थई शके. आ ऊहापोह माटे अत्यारे बे जातनां साधनो उपलब्ध छे. तेमांनां _ एक एवां छे के जेमां साहित्यमां वपराती विशेषभाषाविशेष भाषाना अर्थमां अपभ्रंश पदनो व्यवहार छे अने परत्वेना 'अपभ्रंश'नो बीजां एवां छे के जेमां एवां अनेक पद्यो विद्यमान ऊहापोह छे, जे तुलनात्मक भाषाविज्ञाननी दृष्टिए चोक्खां अपभ्रंशनां छे. १४८ जुओ महाभाष्य-"लकारोपदेशो यदृच्छा-अशक्तिजानुकरण-प्लुत्याद्यर्थश्च" “अशक्त्या कथंचिद् ब्राह्मण्या 'ऋतक' इति प्रयोक्तव्ये 'लतक' इति प्रयुक्तम्" इत्यादि (पृ. ४५ अभ्यं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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