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________________ १४३ हतो तो पण गोशाळाना आवां दुष्ट वचनोथी ते मथाई गयो - वींधाई गयो अने चन्दन शीतळ छे पग तेने अतिशय घसतां जेम मांथी ताप पेदा थाय छे तेम तेनो को रूप अग्नि भभूकी उठ्यो . १ पछी तो भारे ज्वालाना - भडकाना पसाराने लीधे ठेठ आकाश सुधी व्यापेली एवी तेजोलेश्या तेणे गोशाळाने बाळवा माटे तेना उपर छोडी मूकी, २. [पृ० ८९] बराबर आ ज वखते गोशाळा उपर छोडेली ते तेजोलेश्याने एकदम ओलवी नाखवा माटे पूरी समर्थ एवीगोशाळानी रक्षा माटे सामे शीतलेश्या श्रीजिन भगवाने छोड़ी. ३. हवे ते शीतलेश्या पेली तेजोलेश्यानी आसपास बहार वीटाइ वळी तेथी ते तेजोलेश्या तरत ज जेम हिमनो वरसाद आवतां अग्निना अंगारा ठरी जाय- - शांत थई जाय तेम ओलबाई गई -ठरी गई - शांत थई गई. ४ आम बन्युं त्यारे त्रण लाकना प्रभुनी आवी असाधारण संपत - प्रभावशक्ति जोईने पेलो वेसियायण विनयनम्र बनी प्रभु पासे आवां वचनो बोलीने क्षमा मागवा लाग्यो. ५. हे भगवन् ! मने एवी खबर न इती के आ दुःशील तमारो शिष्य हशे पण हवे हमणां ज आ बातनी खबर पडी माटे हमणां थयेला मारा अपराधनी क्षमा करो. ६. आ रीते बोलता वेसियायणने जोईने गोशाळाए भगवंतने क-हे भगवंत ! आ जूनो शय्यातर वर उन्मत्तनी पेठे शुं बकी रह्यो छे ? भगवाने कह्युं - ज्यारे तुं मारी पासेथी खसीने तेनी पासे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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