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________________ २९८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १२.--उद्देशक १० सिय नोआया, ३ सिय अवत्तवं आयाइ य नोआयाति य, ४ सिय आया य नोआया य, ५ सिय आया य अवत्तवं आयाति य नोआयाति य, ६ सिय नोआया य अवत्तवं आयाति य नोआयाति य । १८. प्र०] से केणटेणं भंते ! एवं तं चेव जाव-'नोआया य अवत्तछं आयाति य नोआयाति या १ [उ०] गोयमा! १ अप्पणो आदितु १ आया, २ परस्स आदिढे नोआया, ३ तदुभयस्स आदिढे अवसवं दुपएसिए खंधे आयाति य नोआयाति य, ४ देसे आदिढे सम्भावपजवे देसे आदिट्टे असब्भावपज्जवे दुप्पएसिए खंधे आया य नोआया य, ५ देसे आदिट्टे सम्भावपजवे देसे आदिदे तदुभयपज्जवे दुपएसिए खंधे आया य अवत्तवं आयाइ य नो आयाइ य, ६ देसे आदिट्टे असम्भावपजवे देसे आदिढे तदुभयपज्जवे दुपएसिए खंधे नोआया य अवत्तवं आयाति य नोआयाति य, से तेणट्रेणं तं चैव जाव-'नोआयाति य'। १९. [प्र०] आया भंते ! तिपएसिए खंधे अन्ने तिपएसिए खंधे ? [उ०] गोयमा ! तिपएसिए खंधे १ सिय आया, २ सिय नोआया, ३ सिय अवत्तवं आयाति य नोआयाति य, ४ सिय आयाय नोआया य, ५ सिय आया य नोआयाओ य, ६ सिय आयाओ य नोआया य, ७ सिय आया य अवत्त आयाति य नोयाति य, ८ सिय आया य अवसवाई आयाओ य नोआयाओ य, ९ सिय आयाओ य अवत्तवं आयाति य नोआयाति य, १० सिय नोआया य अवत्तवं आयाति य नोआयाति य, ११ सिय नोआया य अवत्तवाइं आयाओ य नोआयाओ य, १२ सिय नोआयाओ य अवत्तवं आयाइ य नोआयाइ य, १३ सिय आया य नोआया य अवत्तवं आयाई य नोआयाह य। २०. [प्र०] से केणटेणं भंते! एवं वुचइ-तिपएसिए स्कंधे सिय आया-एवं चेव उच्चारेयचं जाव-सिय आया य नोआया य अवत्तत्वं. आयाति य नोआयाति य? [उ०] गोयमा! १ अप्पणो आइढे आया, २ परस्स आइडे नोआया, ३ तदुभयस्स आइडे अवत्तवं आयाति य नो आयाति य, ४ देसे आइढे सम्भावपज्जवे देसे आदिट्टे असम्भावपजवे तिपएसिए स्कंध १ कथंचित् आत्मा-विद्यमान छे, २ कथंचिद्-नोआत्मा-अविद्यमान छे, अने ३ आत्मा तथा नोआत्मा रूपे कथंचिद् अवक्तव्य छे, ४ कथंचिद् आत्मा छे, अने कथंचिद् नोआत्मा पण छे, ५ कथंचिद् आत्मा छे, अने आत्मा तथा नोआत्मा-ए उभयरूपे अवक्तव्य छे, ६ कथंचित् नोआत्मा छे, अने आत्मा अने नोआत्मा-उभयरूपे अवक्तव्य छे... शा हेतुथी सद्रूप १८. [40] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के-इत्यादि पूर्वोक्त यावद्-आत्मा अने नोआत्मा-ए उभयरूपे अव. के इत्यादि. क्तव्य छे ? (उ०] हे गौतम ! १ (द्विप्रदेशिक स्कंध ) पोताना आदेशथी आत्मा छे, २ परना आदेशथी नोआत्मा छे, ३ उभयना आदेशथी आत्मा अने नोआत्मा-ए उभयरूपे अवक्तव्य छे, ४ एक देशनी अपेक्षाए सद्भावपर्यायनी विवक्षाथी अने एक देशनी अपेक्षाए असद्भावपर्यायनी विवक्षाथी द्विप्रदेशिक स्कंध आत्मा-विद्यमान, तथा नोआत्मा-अविद्यमान छे, ५ एक देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने एक देशना आदेशथी सद्भाव अने असद्भाव ए बन्ने. पर्यायनी अपेक्षाए द्विप्रदेशिक स्कंध आत्मा-विद्यमान अने आत्मा तथा नोआत्मा ए उभयरूपे अवक्तव्य छे.. ६ एक देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने एक देशना आदेशथी सद्भाव अने असद्भाव-ए बन्ने पर्यायनी अपेक्षाए ते द्विप्रदेशि स्कंध नोआत्मा-अविद्यमान अने आत्मा तथा नोआत्मारूपे अवक्तव्य छे. ते हेतुथी ए प्रमाणे कर्तुं छे के यावद्-नोआत्मा-अविद्यमान छे.' त्रिप्रदेशिक स्कन्धना १९. प्र०] हे भगवन् ! "त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्मा-विद्यमान छे के तेथी अन्य त्रिप्रदेशिक स्कंध छे! [उ०] हे गौतम! त्रिप्रदेभारमा-भादि तेर शिक स्कंध १ कथंचित् आत्मा-विद्यमान छे, २ कथंचिद् नोआत्मा-अविद्यमान छे, ३ आत्मा तथा नोआत्मा-ए उभयरूपे कथंचिद् अवक्तव्य छे, ४ कथंचिद् आत्मा तथा कथंचित् नोआत्मा छे, ५ कथंचिद् आत्मा तथा नोआत्माओ छे, (एकवचन अने, बहुवचन.)६ कथंचिद् आत्माओ अने नोआत्मा छे, (बहुवचन अने एकवचन.) ७ कथंचिद् आत्मा अने कथंचिद् आत्मा तथा नोआत्मा-ए उभयरूपे अवक्तव्य छे, ८ कथंचिद् आत्मा अने आत्माओ तथा नोआत्माओ-ए उभयरूपे अवक्तव्य छे. ९ कथंचिद् आत्माओ अने आत्मा तथा नोआत्मा-ए उभयरूपे अवक्तव्य छे, १० कथंचिद् नोआत्मा अने आत्मा तथा नोआत्मा-ए उभयरूपे अवक्तव्य छे, ११ कथंचिद् नोआत्मा अने आत्माओ तथा नोआत्माओ-ए. बन्ने रूपे अवक्तव्यो छे, १२ कथंचिद् नोआत्माओ अने आत्मा तथा नोआत्मा-ए. उभयरूपे अवक्तव्य छे, १३ कथंचिद् आत्मा, नोआत्मा अने आत्मा तथा नोआत्मा-ए बन्ने रूपे अबक्तव्य छे. शा हेतुथी त्रिप्रदेशि- २०. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के, 'त्रिप्रदेशिक स्कंध कथंचिद् आत्मा छे-इत्यादि पूर्व प्रमाणे कहे, यावद्: क स्कन्धना 'आत्माइत्यादि मांगा थाय कथंचिद् आत्मा, नोआत्मा अने आत्मा तथा नोआत्मारूपे अवक्तव्य छे ! [उ०] हे गौतम ! (त्रिप्रदेशिक स्कंध) पोताना आदेशथी १. आत्मा छे, २ परना-आदेशथी नोआत्मा छे, ३ उभयना आदेशथी आत्मा अने नोआत्मा-ए उभय रूपे अवक्तव्य छे, ४ एक देशना आदेशची सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए भने एक देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्मा भने नोआत्मारूप छ, ५ एक १९ * त्रिप्रदेशिक स्कन्धने विषे तेर भांगा थाय छे. तेमा पूर्वे कहेला सात भांगामाथी आदिना त्रण भागा सकल स्कन्धनी अपेक्षाए थाय छ, पछीना यीजा प्रण भांगाना एकवचन अने बहुवचनना भेद थकी त्रण प्रण विकल्पो थाय छे. अने सातमो भांगो एकज प्रकारनो छे. मामा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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