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________________ शतक १२.उद्देशक १०. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवती सूत्र. १९७ ? १२. [प्र०] आया मंजे ! रवणप्पमापुडवी अन्ना रवणप्यमा पुढयी [४०] गोषमा ! रवणप्यमा १ सय आया, २ सिय नोआया, ३ सय अवत्त आयाति य नोआवाह य [प्र०] से केणद्वेगं भंते! एवं युवद रयणप्पभा पुढची सिय आया, सिव नोमाया, सिय अवत्त आताति व नोआताति य' ? [ड०] गोयमा ! अपणो आदिट्ठे १ आया, परस्स आदि २ नोनाया ३ तदुभयस्त आदि भवतवं रवणप्यभा पुढची आयाति य नोआयाति य से तेा तंज- जो आयाति य । १३. [प्र० ] आया भंते! सकरण्पमा पुढची ? [४०] जहा रवणप्पना पुढची तदा सकरप्पभाए वि एवं जाय-भ सत्तमा । १४. [०] आया भंते! सोहम्मे कप्पे पुच्छा । [उ०] गोयमा ! सोहम्मे कप्पे १ सिय आया, २ सिय नोआया, जाव -नो आयाति य । [ प्र० ] से केणट्टेणं मंते ! जाव - 'नो आयाति य' १ [उं०] गोयमा ! अप्पणो आइट्ठे १ आया, परस्स आइडे २ नो भाषा, तदुभयरस धार अवतयं आताति व नोबांताति प से तेण तं चेच जाव 'नोभावाति य' । एवं जा-अर कप्पे | १५. [२०] आया मंते 1 गेपिविमाणे, अपने विजविमाणे [४०] एवं जहा रवणण्पभा तहेच, एवं अणुत्तर विमाणा वि एवं ईसिप भारा वि । , " १६. [प्र० ] आया भंते! परमाणुपोग्नले अग्ने परमाणुपोम्पले ? [30] एवं जहा सोहम्मे कप्पे तहा परमाणुपोमाले विभाणियते । १७. [प्र० ] आया भंते ! दुपएसिए खंधे, अन्ने दुपएसिए खंधे ? [ उ०] गोयमा ! दुपपसिए संधे ९ सिय आया, २ ] रूप के असदरूप छे १ १२. [प्र०] हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी आत्मा - सत्स्वरूप छे के अन्य-असत्स्वरूप रत्नप्रभा पृथिवी छे ? [उ०] हे गौतम! रत्नप्रभा रत्नप्रभा पृथिवीसपृथ्वी १ कथंचित् आत्मा सद्रूप छे, २ कथंचित् नोआमा असद्रूप पण छे, अने ३ सद्रूपे अने असद्रूपे [ उभयथा कथंचित् अवक्तव्य-कहेवाने अशक्य छे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के, 'रत्नप्रभा पृथिवी कथंचिद् आत्मा - सद्रूप छे, कथंचित् नोआमा असद्रूप छे, अने सद् अने असद्-ए उभयरूपे कथंचिद् अवक्तव्य छे. [३०] हे गौतम! "रजप्रभा पृथिवी पोताना आदेशची सरूपथी आत्मा विद्यमान छे, परना आदेशथी - पररूपे विवक्षायी नोआत्मा - अविद्यमान छे, अने उभयना आदेशथीस्व अने परनी विवक्षाथी आत्मा - सद्रूपे अने नोआत्मा - असद्रूपे अवक्तव्य छे. ते हेतुथी पूर्व प्रमाणे कां छे तेम आत्मा - सद् अने यावद् - नोआत्मा - असद्रूपे अवक्तव्य छे. - - १३. [प्र० ] हे भगवन् ! शर्कराप्रभा पृथ्वी आत्मा - सद्रूप छे? - इत्यादि प्रश्न. [३०] जेम रत्नप्रभा पृथ्वी कही तेम शर्कराप्रभा पृथ्वी शर्करा प्रभा पृथिवी. संबंघे पण जाणवुं. ए प्रमाणे यावद्-अधः सप्तम पृथ्वी सुधी जाणवु. १४. [प्र०] हे भगवन् ! सौधर्म देवलोक आत्मा - सद्रूप छे ? - इत्यादि प्रश्न. [३०] हे गौतम! सौधर्म कल्प १ कथंचित् आत्मा - सद्रूप सौधर्म देवलोक छे, २ कयंचिद् नोआमा असद्रूप छे, याद् आत्मा-सद् अने नोआमा असद्रूपे कयंचिद् अवक्तव्य छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के, 'ते याबद्- आत्मा अने नोआत्मारूपे अवक्तव्य छे ! [उ० ] हे गौतम! पोताना आदेशथी आत्मा विद्यमान छे, परना आदेशाची नोखामा अभिधमान छे, अने वनेना आदेशाची अवक्तव्य आत्मा तथा नोआत्मा रूपे अवाप्य छे, माटे ते हेतुषी इखादि पूर्वोक्त याद् आत्मा तथा नोआत्मा रूपे अवक्तव्य छे. ए रीते याच अच्युतकल्प पण जाणवी. १५. [प्र०] हे भगवन् ! ग्रैवेयक विमान आत्मा - विद्यमान छे के तेथी अन्य ( अविद्यमान ) ग्रैवेयक विमान छे ? [ उ० ] ए बधुं मैत्रेयक विमानरत्नप्रभा पृथिवीनी पेठे (सू० १२) जाणवुं, अने ते प्रमाणे अनुत्तर विमान तथा ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी (सिद्धशिला) सुधी जाणवुं. १६. [२०] हे भगवन् ! एक परमाणुपुद्गल आत्मा विद्यमान छे के तेवी अन्य (अविषमान) परमाणुपुद्गल छे ! [30] हे गौतम! जेम सौधर्मकल्प संबन्धे कह्युं ( सू० १४ ) तेम एक परमाणुपुद्गलसंबन्धे पण जाणवुं. १७. [प्र०] हे भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कंध आत्मा विद्यमान छे के तेथी अन्य द्विप्रदेशिक स्कंध छे ! [३०] हे गौतम द्विप्रदेशिक द्विपदेशिक सन् १२ पृथिवी पोताना दि] पर्याय आमा रुद्रूप छे, परम पर्याय बनोरथारूप के अने खपरा पर्याय व आत्मस्वरूप के अनात्मस्वरूप ए बन्ने प्रकारे कहेवाने अशक्य छे. ए प्रमाणे परमाणु [ सू० १६] सुधी त्रण भांगा थाय छे. १७+ द्विप्रदेशिक स्कन्धने विषे छ भांगा थाय छे, तेमां प्रथमना त्रण भांगा सकल स्कन्धनी अपेक्षाए थाय छे, अने ते पूर्वे कहेला छे. बाक़ीना त्रण भांगा देखणी अपेक्षा . द्विप्रदेशिक एन्थ होवाथी लेना एक देशनी खपर्याय दे सकने विवक्षा करीए अने भीना देशनी परपर्याय व किए तो प्रदेश मे कथंचि आत्मा भने चिद अनात्मरूपे होय, तथा रोना एक देशनी पर्याय सद्रूपे विवक्षा करी बीजा देशनी सद् अने असद् ए उभयरूपे विवक्षा करीए तो ५ कथंचित् आत्मरूप अने अवक्तव्य कहेवाय. तथा ते स्कन्धनो एक देश परपर्यायव असद्रूपे तरी अने एक वीजा देशनी उभयरूपेक्षा करीए तो ते गोवामा भने अपव्य उद्देयाय कचित् आत्मा, नोभारमा भने अयक्तव्य - ए प्रमाणे सातमो भांगो द्विप्रदेशिक स्कन्धने विषे तेना वे अंश होवाथी थतो नथी, त्रिप्रदेशिकादि स्कन्धने विषे तो आ साते भांगा थाय छे. ६ ३८ भ० सू० Jain Education International For Private & Personal Use Only प असद्रूप ? www.jainelibrary.org/
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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