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________________ शतक ११.-उद्देशक ९. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २२५ सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एयमटुं सोचा निसम्म हथिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग० जाव-पहेसु बहु जणो अन्नमस्स एवमाइक्खड़, जाव परूवेइ-'एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवं आइक्वड, जाव परूवेइ-अत्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे, जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य'। से कहमेयं मन्ने एवं? - ९. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, परिसा जाव पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी जहा बितियसए नियंठुद्देसए जाव अडमाणे बहुजणसई निसामेइ, बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्खइ, एवं जाव परूवेइ-'एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवं आइक्खइ, जाव परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! तं चेव जाव वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य'। से कहमेयं मन्ने एवं ? . १०. तए णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमद्रं सोचा निसम्म जाव-सट्टे जहा नियंठुद्देसए जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-जन्नं गोयमा! से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमातिक्खइ, तं चेव सवं भाणियचं, जाव-भंडनिक्खेवं करेति, हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडग० तं चेव जाव वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य । तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतिए एयमढे सोचा निसम्म तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, तणं मिच्छा । अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि, जाव परूवेमि-'एवं खलु जंबुहीवादीया दीवा लवणादीया समुद्दा संठाणओ एगविहिविहाणा, वित्थारओ अणेगविहिविहाणा एवं जहा जीवाभिगमे जावसयंभूरमणपज्जवसाणा अस्सि तिरियलोए असंखेजे दीवसमुद्दे पन्नत्ते समणाउसो। ११. [प्र०] अत्थि णं भंते ! वुद्दीवे दीवे दवाइं सवन्नाई पि अवन्नाई पि सगंधाई पि अगंधाई पि सरसाइं पिअरसाई पि सफासाई पि अफासाई पि अनमन्नबद्धाइं अन्नमनपुट्ठाई जाव-घडताए चिटुंति ? [30] हंता अत्थि।। त्यारबाद ते शिवराजर्षि पासेथी ए प्रकारर्नु वचन सांभळी, अवधारी हस्तिनापुर नगरमा शंगाटक, त्रिक, यावद् राजमार्गोमां घणा माणसो परस्पर एम कहे छे-यावद् एम प्ररूपे छे-हे देवानुप्रियो ! शिवराजर्षि आ प्रमाणे कहे छे यावत् प्ररूपे छे के हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवाळु ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयुं छे, यावत् ए प्रमाणे आ लोकमा सात द्वीप अने सात समुद्रो छे, त्यार पछी नथी, ते एम केवी रीते होय? ९. ते काले-ते समये महावीर स्वामी समोसर्या, पर्षद् पण पाछी गई. ते काले-ते समये श्रमण भगवान् महावीरना मोटा शिष्य इंद्रभूति नामे अनगार बीजा शतकना निम्रन्थोदेशकमां *वर्णव्या प्रमाणे यावत् भिक्षाए जता घणा माणसोनो शब्द सांभळे छे-बहु माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहे छे यावत् प्ररूपे छे के 'हे देवानुप्रियो ! शिव राजर्षि एम कहे छे-यावत् एम प्ररूपे छे-हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवाळु ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयु छे, अने यावत् सात द्वीप अने सात समुद्रो छे, त्यार पछी द्वीपो अने समुद्रो नथी, तो ए प्रमाणे केम होय? १०. [प्र०] व्यार पछी भगवान् गौतमे घणा माणसो पासे आ वात सांभळी, अवधारी श्रद्धावाळा थई निग्रंथ उद्देशकमां कह्या प्रमाणे यायत् श्रमण भगवंत महावीरने पूज्यु-हे भगवन् ! शिवराजर्षि कहे छे के-'यावत् सात द्वीप अने सात समुद्र छे, त्यार पछी काइ नथी' शिवराजपि संमत तो ए प्रमाणे केम होइ शके ? [उ०] 'हे गौतम' ! एम कही श्रमण भगवान् महावीरे गौतमने आ प्रमाणे कह्यु-हे गौतम ! घणा माणसो जे सात समुद्र संबन्धे प्रश्न परस्पर ए प्रमाणे कहे छे-इत्यादि बधुं कहे, यावद् ते शिवराजर्षि पोताना उपकरणो मूके छे अने हस्तिनापुर नगरमा जइ शृंगाटक, त्रिक अने बहु प्रकारना मार्गोमां आ प्रमाणे कहे छे, यावत् सात द्वीपो अने समुद्रो छे त्यार पछी नथी, त्यारबाद ते शिवराजर्षिनी पासे आ वात सांभळी अने अवधारी हस्तिनापुर नगरमा माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहे छे के-'यावत सात द्वीप अने समुद्रो छे, ते पछी कांइ नथी' इत्यादि, मिथ्या (असत्य ) छे. हे गौतम! हुं ए प्रमाणे कहुं छु, यावत् प्ररूपुंछु-ए प्रमाणे जंबूद्वीपादि द्वीपो अने लवणादि समुद्रो बधा [वृत्ताकारे होवाथी ] आकारे एक सरखा छे, पण विशालताए द्विगुण द्विगुण विस्तारवाळा होवाथी अनेक प्रकारना छे-इत्यादि सर्व जीवाभिगम'मा कह्या प्रमाणे जाणवं, यावत् हे आयुष्मन् श्रमण ! आ तिर्यग्लोकमां स्वयंभूरमण समुद्रपर्यन्त असंख्यात द्वीपो अने समुद्रो कह्या छे. ११. [प्र०] हे भगवन् ! जंबूद्वीप नामे द्वीपमा वर्णवाळां, वर्णरहित, गंधवाळा, गंधरहित, रसवाळां, रसरहित, स्पर्शवाळा अने पर्णादिरहित भने वर्णादिसहित दम्यो स्पर्शरहित द्रव्यो अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट यावद् अन्योन्य संबद्ध छे ? [उ०] हे गौतम! हा, छे. जुओ भग० ख०१पृ. २८१. * भगवान् गौतमनुं वर्णन जुओ भग० सं० १२.२०५पृ० २८०. १. 1 द्वीप भने समुद्रोनुं वर्णन जुओ जीवाभि० प्रति० ३ उ. १५० १७६-१. www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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