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________________ 135 परिशिष्ट-१ बाला. टांल्यां छै मेलां कर्म जेणिं, दीधा छइं भला अवतार जिनगणधरादिक पदवीरूप जेणइं, निर्धाटिउ ___ अधर्म जेणइं, प्रमुख कहेतां आदइ अनइ परिणांमें कहेतां अंतइं पणिइ रमणिक, शरण मुजनें होजो एहवो श्रीजिनधर्म / / 44 / / अव. न केवलं जिनधर्मं शरणं प्रपन्नोऽहं किन्तु जिनमतमपीत्याह- कालत्तए वि न मयं जम्मण-जर-मरण-वाहिसयसमयं / अमयं व बहुमयं जिणमयं च सरणं पवनो हं / / 45 / / टि. जिनमतं प्रवचनं द्वादशाङ्गम् / / 45 / / अव. कालत्रयेऽपि न मृतं न विनष्टम्, विदेहेषु सर्वदा सद्भावात् / जन्मजरामरणरूपाणि व्याधिशतानि. सुमृतानि विलयं गतानि यत्र / अमृतमिव बहुमतं जिनमतं शरणं प्रपन्नोऽहम् / / 45 / / बाला. अतीत अनागत वर्तमान ए त्रिण कालने विषे नाश नथी पाम्युं, जनम जरा मरणरूप विराधि तेहना सैकां तेहY समावनार, अमृत सरिखु, सर्वनइं अभीष्ट वल्लभ एहवं श्री जिनशासन अनइं धर्म ते प्रतें शरण पडवज्यो डुं हुं / / 45 / / पसमियकामपमोहं दिट्ठाऽदिढेसु न कलियविरोहं / सिवसुहफलयममोहं धम्मं सरणं पवन्नो हं / / 46 / / टि. कामप्रमोहः कामोन्मादः / दृष्टादृष्टेषु बादरसूक्ष्मजीवेष्वकलितो विरोधो विपरीतप्ररूपणा येन / / 46 / / अव. प्रशमित-उपशमितकामप्रमोहम् / दृष्टादृष्टेषुबादरसूक्ष्मेषु जन्तुषुन कलितो न कृतो विरोधो येन / शिवसौख्यफलं ददाति / अमोघं निष्पापं धर्मं शरणं प्रपन्नोऽहम् / / 46 / / टबो. अत्यंत समाविउ कंदर्प कामनो व्यामोह जेणिं, दीठा पदार्थ जे बादर पृथवीकाय प्रमुख अदीठा पदार्थ, जे सूक्ष्म पृथ्वीकाय प्रमुख तेहने विषं नथी कीधो विरोध कहेतां विपरीत परूपणा जेणिं, मोक्ष सुखरूप फलनो दायक, सदाइ सफल ते श्री जिनधर्म प्रतें शरण पडिवज्यो छु हुं / / 46 / / नरयगइगमणरोहं गुणसंदोहं पवाइनिक्खोहं / निहणियवम्महजोहं धम्म सरणं पवनो हं / / 47 / / . टि. प्रवादिभिर्निक्षोभ्यो क्षोभयितुमशक्यं निर्गतक्षोभं वा नितरां क्षोभो यस्मात् तेषामिति वा / / 47 / /
SR No.004445
Book TitleAgam Chatusharan Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size12 MB
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