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________________ 127 . परिशिष्ट-१ टि. परमपदं मुक्तिस्तद्धेतुत्वाच्चारित्रादिक्रियाकलापः / अनन्तसामर्थ्याः / मङ्गलरूपाः / सिद्धानिष्पन्नाः पदार्थार्येषाम् / अथ मङ्गलभूतसिद्धपदस्थाः / / 25 / / अव. त्रैलोक्यमस्तकस्था परमपदं मोक्षं तत्र तिष्ठतीति / अचिन्त्यसामर्थ्याः ! मङ्गलरूपः सिद्धः निष्पन्नः पदार्थो येषामथवा मङ्गलाय सिद्धपदस्थाः प्रशस्तप्रकृष्टसुखा / एवंविधा सिद्धा मम शरणं भूयात् / / 25 / / बाला. चउदराजलोकना अग्रनइ वि सिद्धिसिला ते उपरि जोअण 1 (एक) तेहनो चोथो कोस तेहनें छठे भागे अलोक ने अडीने सिध्ध रह्या छ / त्रिणि लोकना मस्तकने विषै रह्या परमपदनइ विषइ रह्या, चिंतवी न सकीइ एहवी समर्थाइ छइ जेहनी, मंगलिक रूप जे सिध्ध पद तेहनइ विषइ रह्या ते श्री सिध्ध सरण होजो / अनोपम जे सुख तेणिं करी प्रशंसनीक / / 25 / / मूलक्खयपडिवक्खा अमूढलक्खा सजोगिपञ्चक्खा / - साहावियत्तसुक्खा सिद्धा सरणं परममुक्खा / / 26 / / टि. मूलादुत्खातप्रतिपक्षाः / स्वाभाविकं आत्तं आत्वे वा गृहीतं सौख्यम् / / 26 / / अव. मूलस्य संसारस्य क्षये प्रतिपक्षा वैरिणः / लक्षे ध्याने, अमूढा अमूढलक्षाः / सयोगिनां योगधारकाणां प्रत्यक्षाः / स्वाभाविकमात्तं गृहीतं सौख्यं यः / एवंविधाः सिद्धाः / पुनः किम्भूताः ? परमो मोक्षो येषां ते परममोक्षाः / / 26 / / बाला. मूलथी खपाव्या कर्म रूपी या वइरी जेणइ, सदाइं सोपयोग, केवलज्ञानीनइ प्रत्यक्ष, स्वाभाविक . आत्मानुं सुख छै जेहनइ एहवा श्री सिध्ध सरण होजो उत्कृष्टो कर्म नो मोक्ष छे जेहने / / 26 / / पडिपिल्लियपडणीया समग्गझाणग्गिदडभवबीया / जोईसरसरणीया सिद्धा सरणं सुमरणीया / / 27 / / टि. योगीश्वराः गणधराः / / 27 / / अव. प्रतिप्रेरिता निराकृताः प्रत्यनीकाः प्रतिपक्षा वैरिणो यैः / समग्रध्यानाग्निदग्धभवबीजाः शरणीयाः / योगीश्वरैः स्मरणीयाः / सिद्धा मम शरणम् / / 27 / / बाला. नमाव्या बाह्य और अंतरंग वेरी जेणे, संपूर्ण जे ध्यान रूपीउ अग्नि तेणइ करी बाल्यु संसारनूं बीज मोहनी कर्म जेणे, योगीश्वर जे गणधरादिक तेहनें समरण करवा योग्य एहवा श्री सिध्ध सरण होजो स्मरण करवा योग्य / / 27 / /
SR No.004445
Book TitleAgam Chatusharan Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size12 MB
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