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________________ अंतःस्रावी ग्रन्थि - प्रणाली पीतिचल पीयूष चुल्लिका उपचुल्लिका थाइमस उपवृक्क रज : पिंड (स्त्रियों में) वीर्य पिंड (पुरुषों में) अन्तःस्रावी ग्रन्थि-प्रणाली . शरीरगत अधिकांश ग्रंथियों में नलिकायें होती हैं। इन नलिकाओं के माध्यम से ही वे अपने स्राव या रस का बहाव उस स्थान-विशेष को करती हैं जिनसे. संबंधित कार्य वे करती हैं / उदाहरण के लिये, पाचन ग्रन्थियाँ पाचक रस को जठर और आँतों में भेजती हैं / स्वेद-ग्रंथियाँ पसीने के रूप में अपने रेस को चर्म-स्तर पर पहुँचाती हैं। कुछ अन्य प्रकार की ग्रंथियाँ भी होती हैं / इनमें विशेष नलिकाओं की रचना नहीं होती / इनके द्वारा रासायनिक द्रवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें . 'रस' कहते हैं। इनका प्रवाह प्रत्यक्षतः रक्त - प्रवाह में हो जाता है / सम्मिलित रूप से ये ग्रंथियाँ नलिकाविहीन ग्रंथि या अंतःस्रावी ग्रंथियाँ कहलाती हैं। समस्त शारीरिक एवं मानसिक कार्यों पर इनका गहरा प्रभाव पड़ता है। इनके द्वारा निर्मित रस रक्त में मिश्रित होकर तथा विभिन्न अंगों में पहुँचकर उनकी 361
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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