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________________ मानवीय अंतः रचना मनुष्य की आंतरिक रचनाओं द्वारा ही उसके प्रत्येक कार्य सम्पन्न होते हैं और इन्हीं के द्वारा वह बाह्य वातावरण की बातों को ग्रहण करता है / तथापि यह दुख का विषय है कि न्यूनतम व्यक्तियों को ही शरीर के आंतरिक कार्यों का ज्ञान है / हमें बाहरी संसार का ज्ञान तो बहुत है; परन्तु आश्चर्य है कि बहुत कम लोगों को ही इस बात का ज्ञान है कि उनके शरीर में कौन - कौन सी क्रियायें होती हैं। ___ प्रत्येक व्यक्ति को यदि विस्तृत रूप से नहीं तो इस बात का सामान्य प्रारम्भिक ज्ञान अवश्य ही होना चाहिये कि शरीर के कार्य क्या हैं और उसके अंतःप्रदेश में कौन - कौन से आश्चर्यजनक कार्य होते हैं। शरीर के साथ उचित व्यवहार न होने के कारण ही अनेक व्यक्तियों में शारीरिक एवं मानसिक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं / उदाहरणार्थ - खरीदी गई नई मोटर की हम उचित देखभाल करते हैं / यदि कोई ऐसा न करे तो हम उसे अज्ञानी समझते हैं / मोटर के क्रिया-कलापों एवं उसकी सक्षमता के विषय में जानकर व्यक्ति उसकी उपयुक्त देखभाल करता है, उसे इस ढंग से चलाता है कि उसकी मशीनों के कार्यों में किसी प्रकार की अव्यवस्था न आने पाये / इसके विपरीत अज्ञानी व्यक्ति उसका दुरुपयोग करता है / ठीक यही दशा शरीर की है। जिन व्यक्तियों को शरीर-विज्ञान का ज्ञान होता है, वे शरीर के आन्तरिक अंगों की उचित देखभाल करते हैं; अन्यथा इन अंतरांगों को दुरुपयोग का शिकार बनना पड़ता है। इसी कारण शरीर - विज्ञान की पुस्तक न होते हुए भी इस पुस्तक में कुछ आंतरिक अंगों का वर्णन उनका प्रारम्भिक ज्ञान प्रदान करते हुए दिया जा रहा है | इस ज्ञान की प्राप्ति से व्यक्ति में इन अंगों के प्रति सम्मान में वृद्धि होगी। साथ ही इस पुस्तक में यौगिक क्रियाओं के साथ जिन शारीरिक अंगों का सन्दर्भ दिया गया है, उन्हें समझने में भी पाठकगण समर्थ होंगे / 360 .
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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