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________________ तत्पश्चात् उन्हीं पाँच आसनों की आठ-आठ आवृत्तियाँ कीजिये / पुनः दो गिलास पानी पीकर आसनों का अभ्यास कीजिये / अब फिर दो गिलास पानी पीकर आसनों की पुनरावृत्ति कीजिये / इस प्रकार कुल छः गिलास पानी पीकर शौच के लिए जाइये / सामान्यतः पूर्ण मल -निष्कासन होगा व मूत्र की मात्रा में वृद्धि होगी। समय एवं क्रम प्रातःकाल अन्न-जल ग्रहण किये बिना खाली पेट में प्रतिदिन उपचार के रूप में बिना किसी हानि के किया जा सकता है, अन्यथा सप्ताह में एक दो दिन इसका अभ्यास पर्याप्त होगा। सावधानी - क्रिया की समाप्ति के कम से कम एक घंटे बाद ही कुछ खाना चाहिए / इस अभ्यास में किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है। टिप्पणी निर्देशक की सुविधा न होने पर या अन्य किसी कारण से शंखप्रक्षालन के . अभ्यास में असमर्थ व्यक्तियों के लिए यह उत्तम है। सीमाएँ जठर या आमाशय में घाव रहने पर उचित सलाह एवं निर्देशन में ही यह अभ्यास करें। उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्तियों को सादे गर्म जल का प्रयोग करते हुए अभ्यास करना चाहिए / नमकीन जल का प्रयोग कदापि न करें। लाभ ... दीर्घकालीन पेचिश, वायु अम्लता, अपचन आदि पाचन - विकारों के लिए अति उत्तम है / वृक्क के स्पर्शदोष एवं पथरी के रोग से बचाव करता है, - अतः वृक्क एवं मूत्र -प्रणाली के लिए हितकर है। वहिसार धौति या अग्निसार क्रिया प्रारम्भिक अभ्यास . विधि
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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