________________ शतकसंज्ञकः पञ्चमः कर्मग्रन्थः सुरनारएसु चत्तारि 'हुंति तिरिएसु जाण पंचेव / मणुयगईए वि तहा चोद्दस गुणनामठाणाणि // 10 // 12 // . दोण्हं पंच उछच्चेव दोसु एक्कमि होंति वा मिस्सा / सत्तवओगा सत्तसु दो चेव य दोसु ठाणेसु // 11 // 13 // "तिसु तेरस एगे दस नवसत्तसिगम्मि हुन्ति 'एगारा / एगम्मि सच जोगा, अजोगिठाणं हवइ एक्कं // 12 // 14 // तेरस चउसु दसेगे पंचसु नव दोसु होन्ति एगारा / एगम्मि सत्त जोगा अजोगिठाणं हवइ 'एगं // 13 // 15 // चउपच्चइओ बन्धो पढमे उवरिमतिगे तिपच्चइओ / मीसग बीओ उवरिमदुर्ग च देसिक्कदेसम्मि // 14 // 16 // उवरिल्लपंचके पुण दुपच्चओ जोगपच्चओ तिहं / / सामन्नपच्चया खलु अट्ठण्हं होन्ति कम्माणं // 15 // 17 // "पडिणीयअन्तराइयउवधाए तप्पओसनिन्हवणे / आवरणदुर्ग भूओ बन्धइ अच्चासणाए य 16 // 18 // भृयाणुकम्पवयजोगउज्जओ खन्तिदाणगुरुभत्तो / , बन्धइ भूओ सायं विवरीए बन्धए इयरं // 17 // 16 // . "अरहन्त-सिद्ध-चेइअ-तव-सुय-गुरु-साहु-संध पडणीओ। बन्धइ दंसणमोहं अणन्तसंसारिओ जेणं // 18 // 20 // तिव्वकसाओ बहमोहपरिणओ रागदोससंजुत्तो। बन्धइ चरित्तमोहं दुविहंपि चरित्तगुणधाई // 19 // 21 // मिच्छद्दिट्ठी महारम्भपरिग्गहो तिव्व 'लोभनिस्सीलो / निरयाउयं निबंधइ पावमई रुद्दपरिणामो // 20 // 22 // उम्मग्गदेसओ मग्गनासो गूढहिययमाइल्लो / सढसीलो य ससल्लो तिरियाउं बन्धए जीवो // 21 // 23 // पयईअ तणुकसायो दाणरओ सीलसंजमविहूणो / मज्झिमगुणेहि जुत्तो मणुयाउं बन्धए जीवो // 22 // 24 // 1 "होति" इत्यपि / २'चउदस" इत्यपि / 3 "दुण्ह" इत्यपि / 4 “तिसु तेरस एगे दस नव योगा हुन्ति सत्तसु गुणेसु / एक्कारस य पमत्ते सप्त सयोगे अयोगिवकइति पाठान्तरे / 5 “एक्कार।" इत्यपि / 6 “एक्क" इत्यपि / ७“पडिणीयमन्तराइय." इत्यपि / 8 "अरिहन्तः" इत्यपि। 9 "०लोहनीसीलो''इत्यपि।