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________________ 8. कूर्मनामा दृष्टान्त: : : 145 अनेक मनुष्य हृद (द्रह) जेवी मनुष्यगतिमा रहेला होय छे / / 13 // जम्मजरामरणाइं-दुहजलकल्लोलपूरिओ सययं / सेवालजालसरिसं निविडं मिच्छत्तमवणद्धं // 14 / / भावार्थ:-जन्म, जरा अने मरण विगेरेना दुःख रूप मोटा मोजाओ (कल्लोलो)थी निरंतर व्याप्त थयेल द्रहरूप मनुष्यगति जाणवी, जेमां शेवालराशि (ढगला)ना जेवू गाढ मिथ्यात्व चोमेर (चारे दिशा ओमां) प्रसरेलुं छे // 14 // कोमुइमुहुव्व सुहसा-मग्गोहिं तत्थ कम्मविवरहि / नाणानिलेहि भिदं छिदं मिच्छत्तसेवालं // 15 // __भावार्थ:-कौमुदीमहोत्सव . जेवी कर्मविवररूप शुभसामग्री अने ज्ञानरूप पवनथी भेदायेल मिथ्यात्वरूप शेवालमां एक छिद्र (काj) पडी जाय छ / 15 / दि8 च तेण ससहर-बिबस रिच्छं सुदंसणं तत्थ / आणंदिओ मणमि चितइ अच्चम्भुयं किमवि ? // 16 // भावार्थ:-चंद्रबिंबनी पेठे संसारी जीव मिथ्यात्वकर्मना क्षय, उपशम के क्षयोपशमरूप छिद्रने लीधे सुदर्शन (सम्यक्त्व)नो लाभ करे छे अने अपूर्व आनन्दने पामतो विचारे छे के आ अत्यंत आश्चर्यरूप शुं छे ? // 16 //
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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