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________________ 168 अनंगपविट्ठसुत्ताणि / बेइंदियति०, से तं बेइंदियतिरि० एवं जाव चउरिंदिया। से किं तं पंचेंदियतिरिक्खजोणिया 12 तिविहा पण्णत्ता, तंजहाजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया थलयरपंचेंदियतिरिक्खजो० स्वहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। से किं तं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? 2 दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-समुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिवखजोणिया य गम्भवकंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य। से कि तं समुच्छिमजलयरपंचिंदियतिरिक्क्जोणिया ? 2 दुविहा पणत्ता, तंजहा-पजत्तगसमुच्छिम० अपजत्तगसंमुच्छिमजलयर०, से तं समुच्छिम० पंचिंदियतिरिक्ख० / से किं तं गम्भवकंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? 2 दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पज्जत्तगगब्भवकंतिय० अपजत्तगगब्भ० से तं गब्भवकंतियजलयर०, से तं जलयरपंचेंदियतिरि० / से किं तं थलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिया 12 दुविहा पण्णत्ता, तंजहाचउप्पयथलयरपंचेंदिय० परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। से किं तं चउप्ययथलयरपंचेंदिय० 1 चउप्पय० दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-समुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदिय० गन्भवतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य, जहेव जलयराणं तहेव चउक्कओ भेओ, सेत्तं चउप्पयथलयरपर्चेदिय० / से किं तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्ख० 1 २.दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्वजोगिया / से किं तं उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? उरपरि० दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-जहेव जलयराणं तहेव चउकओ भेओ, एवं भुयपरिसप्पाणवि भाणियव्यं, से तं भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया, से तं थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। से कि तं खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? खहयर० दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-समुच्छिम. वहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया गम्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य। से किं तं समुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? संमु० दुविहा पण्णत्ता, तंजहा—पजत्तगसमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया अपजत्तगसमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य, एवं गन्भवतियावि जाव पजत्तगगब्भवकंतियावि जाव अपजत्तगगब्भवक्कंतियावि / खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कइविहे जोणिसंगहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तंजहा-अंडया पोयया समुच्छिमा, अंडया तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-इत्थी पुरिसा गपुंसगा, पोयया तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-इत्थी पुरिसा णपुंसया, तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा ते
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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