SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाजीवाभिगमे प० 3 167 केसवा जलयरा य / मंडलिया रायाणो जे य महारंभकोडंबी // 3 // भिण्णमुहुत्तो णरएसु होइ तिरियमणुएसु चत्तारि / देवेसु अद्धमासो उक्कोसविउव्वणा भणिया / / 4 / / जे पोग्गला अणिट्ठा णियमा सो तेसि होई आहारो / संठाणं तु जहण्णं णियमा हुंडं तु णायव्वं / / 5 // असुभा विउव्वणा खलु णेरइयाणं तु होइ सव्वेसिं / वेउब्वियं सरीरं असंघयणहुंडसंठाणं // 6 // अस्साओ उववण्णो अस्साओ चेव चयइ णिरयभवं / सव्वपुढवीसु जीवो सव्वेसु ठिइविसेसेसुं // 7 // उववाएण व सायं गेरइओ देवकम्मुणा वावि / अज्झवसाण णिमित्तं अहवा कम्माणुभावेणं // 8 // णेरइयाणुप्पाओं उक्कोसं पंचजोयणसयाइं / दुक्खेणभिदुयाणं वेयणसयसंपगाढाणं // 9 // अच्छिणिमीलियमेत्तं णत्थि सुहं दुक्खमेव पडिबद्धं / णरए णेरइयाणं अहोणिसं पच्चमाणाणं ||10 // तेयाकम्मसरीरा सुहुमसरीरा य जे अपजत्ता / जीवेण मुक्कमेत्ता वच्चंति सहस्ससो मेयं / / 11|| अइसीयं अइउण्डं अइतण्हा अइभयं वा। णिरए णेरइयाणं दुक्खसयाई अविस्सामं // 12 // एत्थ य भिण्णमुहत्तो पोग्गल असुहा य होइ अस्साओ। उवबाओ उप्पाओ अच्छि सरीरा उ बोद्धव्या // 13 // से तं गेरइया / / 95 // तइओ रइय उद्देसो समत्तो॥ पढमो तिरिक्खजोणिय उद्देसो से किं तं तिरिक्खजोणिया ? तिरिक्खजोणिया पंचविहा पण्णत्ता, तंजहाएगिदियतिरिक्खजोणिया बेइंदियतिरिक्खजोणिया तेइंदियतिरिक्खजोणिया चउरिंदियतिरिक्खजोणिया पंचिंदियतिरिक्खजोणिया य / से किं तं एगिदियतिरिक्खजोणिया ? 2 पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा-पुढविकाइयएगिदियतिरिक्जोणिया जाव वणस्मइकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया। से किं तं पुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोगिया 1 2 दुविहा पणत्ता, तंजहा-सुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया बायग्पुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया य / से किं तं सुहुमपुढविकाइयएगिदियतिरि० 1 2 दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तसुहुम० अपजत्तसुहुम० से तं सुहुम० / से तिं बायरपुढविकाइय० 1 2 दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तबायरपु०अपजत्तवायरषु०, से तं बायरपुढविकाइयएगिंदिय०, से तं पुढवीकाइयएगिदिय० ।से किं तं आउक्काइयएंगिदिय० 1 2 दुविहा पण्णत्ता, एवं जहेव पुढविकाइयाणं तहेव, आउकायभेदो एवं जाब वणस्सइकाइया से तं वणस्सइकाइयएगिदियतिरिक्ख०। से किं तं बेइंदियतिरिक्ख० 12 दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तगबेइंदियति० अपजत्तग 50
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy