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________________ अनंगपविद्वसुत्ताणि . वा जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया णिग्गए / जइ णं भंते ! तीसे अउकुम्भीए होजा केइ छिड्डे वा जाव राई वा जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया. णिग्गए तो णं अहं सद्दहेजा पत्तिएजा रोएजा जहा अण्णो जीवो अण्णं सरीरं णो तं जीवो तं सरीरं, जम्हा णं भंते ! तीसे अउकुम्भीए णस्थि केइ छिड्डे वा जाव णिग्गए तम्हा सुपइडिया मे पइण्णा जहा तं जीवोतं सरीरं णो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं / " तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी-“पएसी ! से जहाणामए कुडागारसाला सिया दुहओलित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवायगम्भीरा, अह णं केइ पुरिसे भेरिं च दण्डं च गहाय कूडागारसालाए अंतो 2 अणुप्पविसइ 2 ता तीसे कूडागारसालाए सव्वओ समंता घणणि चियणिरसंरणिच्छिड्डाई दुवारवयणाई पिहेइ, तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए ठिच्चा तं मेरिं दण्डएणं महया 2 सद्देणं तालेजा। से गूणं पएसी ! से सद्दे ण अंतोहितो बहिया णिग्गच्छई ?" "हंता णिग्गच्छद।" "अस्थि णं पएसी ! तीसे कूडागारसालाए केइ छिड्डे वा जाव राई वा जओ णं से सद्दे अंतोहितो बहिया णिग्गए ?" णो इणटे समढे / " "एवामेव पएसी ! जीवे वि अप्पडिहयगई पुढवि भिच्चा सिलं भिच्चा पव्वयं भिच्चा अंतोहितो बहिया णिग्गच्छइ, तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी ! अण्णो जीवो"तं चेव" // 3 // 63 // तए णं पएसी राया केसि कुमारसमणं एवं वयासी-अन्थि णं भंते ! एसा पण्णा उवमा, इमेण पुण कारणेणं णो उवागच्छइ / एवं खलु भंते ! अहं अण्णया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए जावं विहरामि / तए णं ममं णगरगुत्तिया ससक्खं जाव उवणंति / तए णं अहं तं पुरिसं जीवियाओ ववरोवेमि 2 त्ता अओकुम्भीए पक्खिवावेमि 2 त्ता अउमएणं पिहाणएणं पिहावेमि जाव पच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि / तए णं अहं अण्णया कयाइ जेणेव सा कुम्भी तेणेव उवागच्छामि रत्ता तं अउकुम्भि उग्गलच्छावेमि / तं अउकुम्भि किमिकुम्भि पिव पासामि, णो चेव णं तीसे अउकुम्भीए केइ छिड्डे वा जाव राई वा जओ णं ते जीवा बहियाहिंतो अंतो अणुपविट्ठा / जइ णं तीसे अउकुम्भीए होजा केइ छिड्डे वा जाव अणुपविट्ठा, तो णं अहं सद्दहेजा जहा अण्णो जीवो तं चेव / जम्हा णं तीसे अउकुम्भीए णत्थि केइ छिड्डे का जाव अणुपविट्ठा तम्हा सुपइट्ठिया मे पइण्णा जहा तं जीवो तं सरीरं तं चेव / " तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी-“अस्थि णं तुमे पएसी ! कयाइ अए धंतपुव्वे वा धमावियपुव्वे वा ?" "हंता अस्थि / " “से णूणं पएसी ! अए धंते
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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