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________________ परिशिष्ट क्रमांक - पूज्यपाद आ. भ. प्रेमसूरि म. सा.का पू. जंबूसूरिजी म. परका पत्रक्रमांक - 1 भुलेश्वर, लालबाग, बम्बई कार्तिक कृष्ण 13 परमाराध्यपाद प्रात:स्मरणीय परम पूज्य आचार्य देवेशकी ओरसे विनयादिगुणयुत आचार्य श्री विजय. जंबूसूरिजी योग अनुवंदना सुखशाताके साथ विज्ञापित हो कि देवगुरुपसाये सुखशाता है / आपका पत्र मिला था / समाचार विदित हुए / चातुर्मासका प्रतिक्रमण करते समय सर्व जीवों को खमाते समय आपको भी खमाये थे / पत्रमें आपने जो लिखा है कि आप कृपालुने यह लिखा था कि मध्यस्थ संघके प्रस्तावमें मैं समझता नहीं, तो फिर ये सारे प्रयत्न किस लिये, यह समझमें नहीं आता / उसके बारेमें में विज्ञापित करता हूं कि बम्बईके लगभग सभी उपाश्रयोंमें, देवद्रव्यकी उपजमेंसे रकम साधारण विभागमें ले जायी जाती है / किसी जगह थोडी तो किसी जगह ज्यादा, ऐसी प्रथा जारी है / देवद्रव्यके भक्षण करनेकी कुप्रथाको नाबूद करनेका उनका फर्ज था, फिर भी उसे नाबूद न कर, प्रस्ताव तुरत मिटिंगमें पारित कर दिया, इसीलिए में संमत न था / साथ ही आप लोगोंको विदित करनेकी मुझे आवश्यकता लगती है कि मध्यस्थ संघने जो प्रस्ताव किया है, वह मेरी दृष्टि से शास्त्रविरुद्ध लगता नहीं / अलबता, शास्त्रोंमें व्यक्तिकी पूजाके बारेमें कई पाठ मिलते हैं और उससे ज्ञात होता है कि श्रावक शक्तिमान हो तो अपने द्रव्यसे प्रभुपूजा करे वह बात योग्य है और मैं भी संमत हूँ कि शक्तिसंपन्न श्रावकने अपने द्रव्यसे श्री जिनेश्वरदेवकी पूजा करनी चाहिए / उसमें मेरा किसी भी प्रकारका विरोध नहीं / अपने द्रव्यसे पूजा करने में भावोल्लास अधिक जागृत होता है, वह संभव है और सम्यग्दर्शनकी निर्मलता भी विशेष बन पाती है / जैसे व्यक्तिको लक्ष्यकर प्रभुपूजाके पाठ मिल पाते हैं वैसे संबोध प्रकरणकी गाथाओमें समुदायको लक्ष्य बनाकर भी पाठ मिलते
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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