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________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी 131 भूतकालमें धनवानोंकी उदारताकी, पांजरापोलोंको विशेष आवश्यकता रहती न थी, क्योंकि उनके पास बड़े बड़े घासके मैदान चरगाहै थीं / घासफूसके लिए कृषिकी जमीनें थीं / उनसे उनका काम निपट जाता था / व्यापारमें पांजरापोलके लिए कर निश्चित किये गये थे / / ___पांजरापोल विषयके निष्णात तो यह कहते हैं कि 'यदि-आज भी पांजरापोल इस प्रकार अपनी जमीन (५०से 100 बीघे) प्राप्त करें और उसमें इस प्रकारके जमीनके अनुकूल फल, चीकु, नारियल, केले आदिकी बाडियाँ करें और अथवा बहुत कम पूंजी लगाकर ज्यादा मुनाफा दे ऐसे लकडी देनेवाले वृक्ष, तैल आदि देनेवाले शाल्मली आदिका वनस्वरूपमें वृक्षारोपण किया जाय तो पाँचवे सालसे बडी कमाई कराने लगे / ' ____ऐसा कुछ पांजरापोलोंके कार्यकरोको सोचना होगा / हमेशाके लिए पैसे माँगते रहनेसे पांजरापीले चलेंगी नहीं और फिर भी वे यदि चलायी जायँगी तो मृत:प्राय होकर रहेंगी / उनके जानवर भी मरणासन्न होंगे / अन्तमें भूखमरीसे मरेंगे / इस प्रकार पांजरापोल चलायी नहीं जातीं / ' खेती(कृषि), बाडी, चरागाह विषयक प्राचीन पद्धतियों और नये देशकालकी अनुकूलताओंका (आर्यनीतिका) संमिश्रण करना पडेगा / पानीकी सुविधा हो जाय तो बादमें कुछ भी अशक्य नहीं / उपरान्त, बैंकोमें फिक्स डिपोजिटोंका जो सूद मिले, उसकी अपेक्षा तो उस रकमसे जमीन खरीदकर, उसमें बुद्धिपूर्वकका आयोजन करनेसे ज्यादा मुनाफा मिल सकता है / ऐसा उसके विशेषज्ञ कहते हैं / बाकी सरकारी सहायता मिल जाय तो बात अलग है; लेकिन उसके विश्वास पर पांजरापोलोंको लटकाये रखना अच्छा नहीं / जानवरोंकी रक्षा करना, यह सरकारी शासनका उत्तरदायित्व है / काश, सरकारको गौशालामें उसकी हठ्ठी-कठ्ठी गायोंमें दिलचस्पी है / मरणासन्न या कमजोर जानवरोंको कत्लखानोंमें ही भर्ती करानेमें उसे दिलचस्पी है / यह तो प्रजा आगबबूली हो न जाय इसी लिए सहायता देकर कमजोर जानवरोंकी रक्षा करनेका दिखावा करता है / अन्यथा पांजरापोलोंको जिलाने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं / अब तो गौशालामें भी कत्लको अनुकूल बनानेकी तरकीबें जारी
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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