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________________ धार्मिक-वहीवट विचार संस्कृतिका सर्वनाश आसानीसे हो जायेगा / . इस भेदनीतिसे सभी सावधान बने / बादमें कभी विवश होकर कोई रचनात्मक कार्य करना पड़े तो तद्विषयक मन:स्थितिको सजाग बनाकर काम करे / फिर भी इस विषयमें सत्य तो सदा सर्वत्र उच्चारित करते ही रहे / प्रश्न : (128) अबोल-मूक जानवरोंकी जीवदयाके और दुःखी मानवोकी अनुकंपाके रूपये बैंकमें जमा रख सकते हैं ? उसकी फिक्स डिपाजिट रसीद ( पहुँच) लेकर केवल उसके व्याजका उपयोग, उन कार्यों में किया जाय ? उत्तर : नहीं, जरा भी नहीं / बैंको द्वारा अधिकांश रकम मच्छीमारी, पोल्ट्रीफार्म आदि और उद्योगोंके यन्त्रवादके लिए दिया जाता है / यन्त्रवाद, भारी बेकारी और प्रदूषणजनित बीमारी मानवप्रजामें घसीट लाकर मानवोंकी बरबादी करता है / यह कितनी बड़ी भारी हिंसा है ? क्या इसमें जीवदयाके या अनुकंपाके रूपयोंका उपयोग करवाया जाय ? . उपरान्त, जब पशु-पक्षियोंके जीवनके लिए इस रकमकी तात्कालिक आवश्यकता खडी होती है तब उसे बैंकमें जकडाये रखना, यह तो ट्रस्टियोंकी बिलकुल क्रूरता है / संपत्तिके संचालन करनेकी मोहदशामेंसे उत्पन्न यह क्रूरतापूर्ण कुकर्म है / जितनी रकम हो, उतनी कम पड़े ऐसी हालतमें इस प्रकार बैंकमें पूंजीको जमा कर, उसका केवल कर्जका ही उपयोग किया जाय यह केवल जीवो प्रति निंदनीय कार्य है / यहाँकी इस बातको पढनेके साथ ही जमा की हुई पूरी रकमोंको ट्रस्टी लोग उठाकर जीवदयादिके योग्य स्थानोमें संपूर्णतया उपयोग कर अज्ञान अवस्थामें हुई गलतीको सुधार लें और बड़े कर्मबंधनमेंसे बच पायें / - यहाँ इतना अपवाद समझें कि पशुओंके घासफूस आदिके लिए यदि कायमी तिथि योजना की गयी हो तो, उस पूंजीको अनिवार्य रूपसे भी बैंकमें रखनी होगी / प्रश्न : (129) वर्तमानकालीन पांजरापोलोंके लिए आपकी मान्यता क्या है ? उत्तर : कई पांजरापोलें आवश्यक आमदनीके अभावमें परेशान हो रही हैं /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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