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________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी है, फिर भी कई जगह पर स्वद्रव्यसे ही पूजा करनेके उपदेश दिये जाते हैं, लेकिन वहाँ कौन-सा शब्द किस संदर्भमें उपयुक्त हुआ है, उसे समझना चाहिए / एव (ज)कार कहीं पर विच्छेदके लिये होता है, कहीं प्रधानता व्यक्त करनेके लिए होता है / गणधरवादमें दूसरे गणधर अग्निभूतिके अधिकारमें अग्निभूतिको ‘पुरुष एवेदं...' आदि वेदवाक्य प्राप्त हुआ, जिससे उन्होंने पुरुष यानी आत्मा ही इस जगतमें है, उसके सिवा, दूसरा कुछ नहीं, ऐसा मानकर कर्मका निषेध किया / भगवान महावीर परमात्माने जब उन्हें समझाया कि 'पुरुष एवेद....' में एवकार शब्द आत्माकी प्रधानता जनानेके लिए है, दूसरे पदार्थोके निषेधके लिए नहीं, क्योंकि दूसरे पदार्थों के अस्तित्व जनानेवाले अन्य कोई वेदवाक्य हैं / अग्निभूति, परमात्माकी बात समझ गये और कर्मके निषेधकी अपनी मान्यताका त्याग किया / उसी प्रकार यहाँ 'स्बद्रव्येणैव पूजा कार्या' आदि पाठ व्यक्तिको लक्ष्यकर जिनपूजाके महत्त्वको जनानेके लिए हैं / व्यक्तिको इस प्रकार उपदेश देना उचित कैसे माना जाय ? प्रश्न : (66) देवद्रव्यकी रकममेंसे देरासरका भंडार, पूजाकी सामग्री, पूजारी आदिका वेतन दिया जाय ? उत्तर :- देवको समर्पित किया द्रव्य, देवद्रव्य है, चाहे वह भंडारमें डाला जाय, अष्टप्रकारी पूजाओंकी उछामनी रूपमें हो, स्वप्नादिककी उछामनीरूप हो या भेंटरूपमें हो / इस देवद्रव्यका देवसंबद्ध सभीकार्यों में उपयोग किया जाय / उसके द्वारा जिनमंदिरोंका जीर्णोद्धार हो सकता है / जिनालयका निर्माण हो सकता है / तीर्थरक्षादिके कार्योंमें वकील आदिको फीस देनेमें किया जाय / उसमेंसे देरासरजीके पूजारीको वेतन दिया जाय / केसर-बादाम, घी आदि सामग्री भी लायी जा सकती है / / हाँ, यदि धनिक लोग अपने स्वद्रव्यसे यह सबकुछ करें तो उत्तम है / ऐसा करनेसे उन्हें धनमूर्छा उतारनेका लाभ प्राप्त होता है / वे ऐसे धन संपन्न होने पर भी भावनाप्रधान न हो, वे देवद्रव्यसे लाये केसर आदिका उपयोग कर प्रभुभजन आदिमे करेंगे, इसमें वे पापभाजन बनेंगे ऐसा नहीं कहा जा सकता / उसके बदले में उनका सम्यग्दर्शन निर्मल होता है / वे देवद्रव्यसे पूजा कर ही नहीं सकते, ऐसा भी कहा नहीं जा सकता / इतना
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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