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________________ .94 .. धार्मिक-वहीवट विचार बन जाता है / उसके बदलेमें प्राप्त किये पुष्पोंका गृहचैत्यमें भी उपयोग करनेमें कोई दोष नहीं, ऐसा स्पष्ट कहा गया हैं / अब जो, स्वद्रव्यसे ही पूजा करनेके लिए कहा गया है, वहीं 'ज'कार द्वारा जो निषेध व्यक्त करनेका है, वह पाठमें ही सूचित किया गया है कि गृहमंदिरके चावल आदिके विक्रयसे प्राप्त रकम द्वारा खरीदे गये पुष्पादि, घरमंदिरके मालिकको स्वयं संघमंदिरमें चढाने न चाहिए; लेकिन अन्य पूजा करनेवालोंके द्वारा चढाये, जिससे स्वयंको वृथा प्रशंसादि दोषारोपण न हो, और दूसरे चढानेवाले न मिले तो, स्वयं भी, ये पुष्पादि मेरे द्रव्यके नहीं, किन्तु घरमंदिरके द्रव्यके है, ऐसी स्पष्टताके साथ चढाये / यहाँ दूसरे पूजा करनेवालेके द्वारा घरमंदिरके द्रव्यके पुष्प चढानेका विधान हुआ.... उपरान्त, दूसरे न हो तो स्वयं भी ये घरमंदिरमें देवद्रव्यके पुष्प हैं, ऐसी स्पष्टताके साथ चढाये, ऐसा विधान किया है / अतः इन पाठोंके द्वारा तो देवद्रव्यसे भी पूजा हो सके, ऐसा विधान हुआ.....हाँ, आगे चलते हुए यह भी सूचित किया है कि भारी घर-खर्च करनेवाले व्यक्तियोंके लिए घरमंदिरकी देवद्रव्यकी रकममेंसे पूजा करना उचित नहीं, क्योंकि उससे अनादर-अवज्ञा आदि दोष लगते हैं / ... सारांश यह कि घरमंदिरके मालिकको संघमंदिरमें घरमंदिरके देवद्रव्यसे पूजा करनेमें या संघमंदिरके देवद्रव्यमेंसे पूजा करनेमें वृथा जनप्रशंसा एवं अनादर-अवज्ञादि दोष लगते हैं, लेकिन देवद्रव्यादिके भक्षणका या उपभोगका दोष नहीं लगता और इसी लिए ऐसे व्यक्तियोंको स्वद्रव्यसे पूजा करनेके लिए अथवा पूजाद्रव्यमें अच्छा हिस्सा देनेके लिए अत्यंत आग्रहपूर्वक उपदेशप्रेरणा देते रहना चाहिए, लेकिन पूजाका निषेध न करें / पहले भी देरासरोंके केसर-सुखड आदिके निभाव निमित्त लागा (स्वैच्छिक कर)का आयोजन किया जाता था, आज भी फंड आदिकी व्यवस्था की जाती है / / परद्रव्य या देवद्रव्यसे पूजा करनेवालेको उसी प्रकारके कर्मका क्षयोपशम होने पर वे स्वयं केवल पूजा ही नहीं, लेकिन स्वद्रव्यसे जिनमंदिरादिके निर्माण या जिर्णोद्धार करनेवाले भी बनते हैं / प्रश्न : (65) तो फिर 'स्वद्रव्येणैव पूजा कार्या' ऐसा कहा, वहाँ एव (ज)कारसे अन्य द्रव्यका निषेध उपस्थित नहीं होता ? / उत्तर :- पहले कहा है वैसे यह पाठ घरमंदिरके मालिकके लिये
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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