SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाव से आत्मा का ध्यान करना समाधि है। संयम, नियम और तप तथा धर्मध्यान व शुक्लध्यान से आत्मा का ध्यान करना - समाधि है।' . आचार्य अकंलंकदेव कहते हैं कि- योग का अर्थ समाधि और ध्यान भी होता है अर्थात् मन-वचन-कायरूप त्रियोगों को आत्मसन्मुख करके पर-पदार्थों और अपनी पर्याय से उपयोग को समेटकर आत्मतत्त्व में एकाग्र करना ध्यान है। ऐसे ध्यान का ही दूसरा नाम समाधि है। ___आचार्य योगीन्द्रदेव कहते हैं कि- जो समस्त विकल्पों का विलय/विनाश है, उसे परम समाधि कहते हैं। यहाँ विकल्प का अर्थ है राग-द्वेष के भाव। समाधि की साधना से समस्त राग-द्वेष के भावों या विकल्पों का शमन हो जाता है। ___ आचार्य शिवार्य कहते हैं कि- सम का अर्थ एकरूप करना, मन को एकाग्र करना, इसप्रकार मन को शुभोपयोग या शुद्धोपयोग में एकाग्र करना समाधि है। आचार्य जिनसेन कहते हैं कि- उत्तम परिणामों में चित्त का स्थिर रखना समाधि है। अर्थवा पंचपरमेष्ठियों के स्मरण को समाधि कहते हैं। - स्याद्वादमंजरी में आचार्य लिखते हैं कि- बहिर्जल्प और अन्तर्जल्प के त्यागस्वरूप योग है और स्वरूप में चित्त का निरोध करना समाधि है। आचार्य पूज्यपाद, आचार्य अकलंकदेव एवं चारित्रसार के कर्ता ने साधुसमाधि नामक भावना में कहा है कि- जैसे भाण्डागार में आग लग जाने पर वह भाण्डागार बहुत उपयोगी होने से उसकी आग को बुझाने का तुरन्त प्रयत्न किया जाता है, उसीप्रकार अनेक प्रकार से तपश्चरण करते हुए किसी कारण विघ्न उत्पन्न होने पर उसको शान्त करना समाधि है।' इन उपर्युक्त विविध आचार्यों के समाधि विषयक विचारों पर दृष्टिपात करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि - भाषा भले ही पृथक-पृथक हो; पर भाव सबका मिलता-जुलता एक जैसा ही है, सभी में प्रकारान्तर से आधि-व्याधि और उपाधि से रहित परिणाम को ही समाधि कहा गया है। जिसका फल निराकुलता, निःशंकता, निर्भयता और परमशान्ति बताया है। अनादि-अनंन्त चिन्मय ज्ञानानन्दस्वभावी आत्मा को निज और क्षणिक संसार, शरीर तथा भोगों को पर मानकर जिनका पर-पदार्थों के प्रति उदासीरूप संवेगभाव होता है, वे मरणकाल में सल्लेखना धारण कर मृत्यु को महोत्सव बना लेते हैं। यह तो समाधि के सम्बन्ध में बात हुई। अब सल्लेखना सम्बन्धी आचार्यों के विचारों पर दृष्टिपात करके यह निर्धारण करेंगे कि हमारे जीवन में यह समाधि और सल्लेखना प्राप्त करने का सुअवसर हमें कब और कैसे प्राप्त हो सकता है? * अच्छे प्रकार से काय व कषाय का लेखन करना, कृश करना सल्लेखना है। प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 00 81
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy