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________________ समाधि और सल्लेरखना 2) पं. रतनचन्द भारिल्ल “संन्यास और समाधि है जीना सिखाने की कला। . बोधि-समाधि साधना शिवपंथ पाने की कला।। .. सल्लेखना कमजोर करती काय और कषाय को। निर्भीक और निःशंक कर उत्सव बनाती मृत्यु को।।" आधि, व्याधि और उपाधि से रहित आत्मा के निर्मल परिणामों का नाम समाधि है। आधि अर्थात् मानसिक चिन्ता, व्याधि अर्थात् शारीरिक रोग और उपाधि अर्थात् पर के कर्तृत्व का बोझ -समाधि इन तीनों से रहित आत्मा की वह निर्मल परिणति है, जिसमें न कोई चिन्ता है, न रोग है और न पर के कर्तृत्व का भार ही है। एकदम निराकुल, परम शान्त, अत्यन्त निर्भय और निःशंक भाव से जीवन जीने की कला ही समाधि है। यह समाधि संवेग के बिना सम्भव नहीं और संवेग अर्थात् संसार से उदासी सम्यग्दर्शन के बिना सम्भव नहीं। सम्यग्दर्शन के लिए तत्त्वाभ्यास और भेदविज्ञान अनिवार्य है। जिसे समाधि द्वारा सुखद जीवन जीना आता है, वही व्यक्ति सल्लेखना द्वारा मृत्यु को महोत्सक बना सकता है, वही शान्तिपूर्वक मरण का वरण कर सकता है। समाधि और सल्लेखना को और भी सरल शब्दों में परिभाषित करें तो हम यह कह सकते हैं कि समाधि समता भाव से सुख-शान्तिपूर्वक जीने की कला है कषायरहित शान्त परिणामों का नाम ही समाधि है। तत्त्वों का मनन, मिथ्यात्व का वमन, कषायों का शमन, इन्द्रियों का दमन आत्मा में रमण यही सब तो समाधि है। सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र की समृद्धि वृद्धि ही समाधि है। और सल्लेखना मृत्यु को महोत्सव बनाने का क्रान्तिकारी कदम है, मानव-जीवन को सार्थक और सफल करने का एक अनोखा अभियान है। समाधि के समुद्र में सतत तलस्पर्शी गोते लगाकर निर्मल गुणरत्न खोजनेवाले आचार्य वृन्द इस सम्बन्ध में क्या कहते हैं, देखते हैं उन्हीं के शब्दों में आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं कि- वचनोच्चारण की क्रिया त्यागकर वीतराग 8000 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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