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________________ हाथ में है। उसका मनचाहा उपयोग करने का हमें अधिकार है। उसकी चिन्ता और उसकी सम्हाल करें, यही हमारा सार्थक पुरुषार्थ होगा। __ समझदारी से मृत्यु का आलिंगन करने वाले साहसी जनों में और आतंकित होकर उससे नजरें छिपाने की कोशिश करने वालों में अन्तर इतना ही है कि जो उस अवश्यम्भावी मृत्यु से डरते हैं, वे उसके आने के पूर्व ही, उसके आतंक से एक बार नहीं, हजारों बार मर लेते हैं। जो मौत की असलियत को और उसकी अनिवार्यता को समझ लेते हैं वे उसकी प्रतीक्षा करते हैं, वह जब आना चाहे तब उसके स्वागत के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे लोग प्रेयसी की तरह मौत की आँखों में आँखें डालकर उसका स्वागत करते हैं। वे मरण को विपत्ति की तरह नहीं, त्यौहार की तरह आनन्द से स्वीकारते हैं। मृत्यु के बारे में सबसे मजेदार बात यह है कि जिन्होंने भी उस पर विचार किया है, उसके बारे में उपदेश दिये हैं या उसके बारे में कुछ लिखा है, उन सब ने मृत्यु का साक्षात् किये बिना, उसके आने के पूर्व ही वह सब किया है। उसके आ जाने पर किसी को लिखने-बोलने या कुछ करने का अवसर नहीं मिलता। ___ संसार में मृत्यु ही एकमात्र ऐसी घटना है जो हम सबके साथ निश्चित ही घटित होने वाली है। वह आयेगी ही, उससे बचने का किसी के पास कोई उपाय नहीं है। विडम्बना यह है कि मृत्यु की अनिवार्यता को जानते और स्वीकार करते हुए भी हम सब उससे बचने या भागने के प्रयत्न करते हैं और उसके बारे में सोचने से भी कतराते हैं। हम इस अटल सत्य से इसलिए पलायन करना चाहते हैं, क्योंकि हमें मृत्यु से भय लगता है। उसका सामना तो दूर, उसके नाम से ही हम भयाक्रान्त हो उठते हैं। मृत्यु के बारे में लोक-मानस में फैली हुई बहुत-सी भ्रामक बातें, या काल्पनिक घटनाएँ भी हमारा डर बढ़ाने में सहायक होती हैं परन्तु वास्तव में मृत्यु इतनी भयानक नहीं है जितना हम उसे मान बैठे हैं। वह एक ऐसी अनिवार्य घटना है जिसे संवेदनापूर्वक समझने-पहचानने और निर्भय होकर सौजन्यपूर्वक स्वीकार करने में ही समझदारी है। नवीन जीवन की देहरी तक पहुँचने के लिए मृत्यु ही हमारा वाहन बनती है। . वास्तव में मृत्यु हमारे लिए कोई अर्थ नहीं रखती, जब तक हम हैं तब तक मौत है ही नहीं, और जब मौत आयेगी तब हम नहीं होंगे। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम मौत की पदचाप सुनकर रोते-घबराते और उसे टालने की कोशिश करते हैं, या निरपेक्ष भाव से, सहजतापूर्वक, निरुद्विग्न मन से उसके स्वागत के लिए अपने आपको समय रहते तैयार कर लेते हैं। मरना कठिन नहीं है, कठिनाइयों का सामना तो जीने के लिए करना पड़ता है। -वो मरने में मुश्किल नहीं कुछ भी ‘गालिब', ये जीने में हैं जो परेशानियाँ / प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 0065
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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