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________________ इन्द्रधनुष बिजली व ओसबिन्दु के समान क्षणिक हैं, ऐसां विचार कर नन्दिसेन मुनि ने संन्यास धार सुरलोक को प्रस्थान किया। - शिलालेख नं. 28 {शक सं. 622) के अनुसार नविलूर संघ की अनन्तामतीगन्ति ने द्वादश तप धार कटवप्र पर्वत पर यथाविधि व्रतों का पालन किया और सुरलोक का अनुपम सुख प्राप्त किया। शिलालेख नं. 29 {शक सं. 622} के अनुसार मयूर ग्राम संघ की आर्या ने कटवप्र पर्वत पर समाधिमरण धारण किया। शिलालेख नं. 30 शक सं. 622} के अनुसार गुणकीर्ति ने भक्ति सहित देहोत्सर्ग किया। शिलालेख नं. 31 [शक सं. 622} के अनुसार नविलूर संघ के मौनिय आचार्य के शिष्य वृषभनन्दि मुनि ने समाधिमरण किया। . शिलालेख नं. 32 {शक सं. 622} के अनुसार मृत्यु का समय निकट जान गुणवान् और शीलवान् देवसेन महामुनि व्रत पाल स्वर्गगामी हुए। __शिलालेख नं. 33 शक सं. 622) के अनुसार अब मेरे लिए जीना असम्भव है ऐसा कहकर कोलत्तूर संघ के.............. ?} ने समाधिव्रत लिया और कटवप्र पर्वत पर से सुरलोक प्राप्त किया। __ शिलालेख नं. 35 (लगभग शक सं. 622) के अनुसार व्रत, शील आदि सम्पन्न ससिमन्ति गन्ति कलवप्पु पर्वत पर आई और यह कहकर कि मुझे मार्ग का अनुसरण करना है, तीर्थगिरि पर संन्यास धारण कर स्वर्गगामी हुई। कगे ब्रह्मदेव स्तम्भ के लेख शक सं. 896} में गंगराज मारसिंह के प्रताप का वर्णन है। इसमें कथन है कि मारसिंह राष्ट्रकूट नरेश ने कृष्णराज तृतीय के लिए गुर्जर देश को विजय किया। कृष्णराज के विपक्षी अल्ल का मद चूर किया; विन्ध्य पर्वत की तली में रहने वाले किरातों को जीता। मान्यखेट में नृप कृष्णराज] की सेना की रक्षा की। इन्द्रराज चतुर्थ का अभिषेक कराया। पातालमल्ल के कनिष्ठ भ्राता वज्जल को पराजित किया। वनवासी नरेश की धन-सम्पत्ति का अपहरण किया। माटूर वंश का मस्तक झुकाया, नोलम्बकुल के नरेशों का सर्वनाश किया। काडुवटि जिस दुर्ग को नहीं जीत सका था, उस उचगि दुर्ग को स्वाधीन किया। शबराधिपति नरग का संहार किया। चौड़नरेश राजादित्य को जीता। तापी तट, मान्यखेट, गोनूर, उर्लाग, वनवासी व पाभसे के युद्ध जीते व चेर, चोड़, पाण्ड्य और पल्लव नरेश को परास्त किया व जैनधर्म का प्रतिपालन किया और अनेक जिनमन्दिर बनवाए। अन्त में उन्होंने राज्य का परित्याग कर अजितसेन भट्टारक के समीप तीन दिवस तक सल्लेखना व्रत का 132 0 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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