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________________ जैन शिलालेखों में सल्लेरखना . : डॉ. रमेशचन्द जैन उपसर्ग की स्थिति में, दुर्भिक्ष में, वृद्धावस्था में अथवा रोग का प्रतिकार न होने पर धर्म के लिए शरीर का विमोचन करना सल्लेखना कहलाती है। जैनधर्म में सल्लेखना अथवा समाधिमरण की परम्परा बहुत प्राचीन है। इसके शिलालेखीय साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं। दक्षिण के अनेक शिलालेखों में सल्लेखना का उल्लेख है। चन्द्रगिरि के शिलालेखों में सल्लेखना का वर्णन __ श्रवणबेलगोल के चन्द्रगिरि के शिलालेखों में अनेक स्थानों पर सल्लेखना का वर्णन है। .. शिलालेख नं. 7 लगभग शक सं. 622) के अनुसार कित्तूर में बेल्माद के धर्मसेन गुरु के शिष्य बलदेव गुरु ने संन्यासव्रत पाल प्राणोत्सर्ग किया। शिलालेख नं. 8 शंक सं. 622) के अनुसार मलनूर के पट्टिनिगुरु के शिष्य उग्रसेन गुरु ने एक मास तक संन्यासव्रत पाल प्राणोत्सर्ग किया। शिलालेख नं. 13 {शक 622} के अनुसार तलेकाडु मेल्जेडि के कलापक गुरु कालाविर गुरु के शिष्य ने इक्कीस दिन संन्यास व्रत पाल प्राणोत्सर्ग किया। _ शिलालेख नं. 14 {शक सं. 622} के अनुसार ऋषभसेन गुरु के शिष्य नागसेन गुरु ने संन्यासविधि से प्राणोत्सर्ग किया। शिलालेख नं. 16 शक सं. 622} के अनुसार म्मडिगल ने व्रत पाल देहोत्सर्ग किया। . शिलालेख नं. 17, 18 {शक सं. 572) के अनुसार जो जैनधर्म भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त मुनीन्द्र के तेज से भारी समृद्धि को प्राप्त हुआ था, उसके किंचित् क्षीण हो जाने पर शान्तिसेन मुनि ने उसे पुनः स्थापित किया। इन मुनियों ने बेलगोल पर्वत पर अशन आदि का त्याग कर पुनर्जन्म को जीत लिया। शिलालेख नं. 19 {शक सं. 622) के अनुसार वेट्टेडेगुरु के शिष्य सिंहनन्दि गुरु ने व्रत पाल देहोत्सर्ग किया। शिलालेख नं. 26 शक सं. 622) के अनुसार रूप, लीला, धन व वैभव, कृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 00 131
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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