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________________ सिद्ध नाम सत्य है # मिश्रीलाल जैन आगे-आगे अपनी ही अरथी के मैं गाता चलूँ सिद्ध नाम. सत्य है, अरिहन्त नाम सत्य है। पीछे-पीछे दूर तक दिख रही जो भीड़ है, पंछी शीख से उड़ा खाली पड़ा नीड़ है। सृष्टि सारी देख ले पर्याय ही अनित्य है, सिद्ध नाम सत्य है...... जिनको मेरे सुख-दुःखों सें, कुछ नहीं था वास्ता, उनके ही कन्धों पर मेरा, कट रहा है रास्ता। आँख जब मुँदी तो कोई शत्रु है न मित्र है, सिद्ध नाम सत्य है........ डोरियों से मैं नहीं बंधा मेरा संस्कार था, एक कफन पर ही मेरा रह गया अधिकार था। तुम उसे उतारने जा रहे, यह सत्य है, सिद्ध नाम सत्य है......... उनके अनुराग को आज ये क्या हो गया, जिस क्षण चिता पर चढ़ा महान कैसे हो गया। जो अनित्य वो ही नित्य, नित्य ही अनित्य है, सिद्ध नाम सत्य है..... मैं अरूपी गंध दूर उड़ गई थी फल से, लहर थी, चली गई दूर मृत्यु कूल से। सत्य देख हँस रहा, कि जल रहा असत्य है, सिद्ध नाम सत्य है........ मैं तुम्हारे वंश से भटका हुआ हूँ देवता, आत्मतत्त्व छोड़कर मैं जगत को देखता। ये अनादि काल की, भूल का ही कृत्य है, सिद्ध नाम सत्य है.......... प्रकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 00 117
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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