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________________ 52 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :पश्चमो विभागः थूलए पाणाइवाए पञ्चक्खाए जावजीवाए जाव परिग्गहे णवरं सव्वे मेहुणे पञ्चक्खाए जावजीवाए, अम्मडस्स णं परिवायगस्स णो कप्पइ अक्खसोतप्पमासमेत्तपि जलं सयराहं उत्तरित्तए णगणत्थ श्रद्धाणगमणेणं, अम्मडस्स णं णो कप्पइ सगडं एवं तं चेव भाणियव्वं जाव गाणस्थ एगाए गंगामट्टियाए 3 / अम्मडस्स णं परिवायगस्स णो कप्पइ अाहाकम्मिए वा उद्देसिए वा मीसजाए इ वा अमोयरए इ वा पूइकम्मे इ वा कीयगडे इ वा पामिच्चे इ वा अणिसि? इ वा अभिहडे इ वा ठइत्तए वा रइत्तए वा कतारभत्ते इ वा दुभिक्खभत्ते इ वा पाहुणगभत्ते इ वा गिलाणभत्ते इ वा वदलियाभत्ते इ वा भोत्तए वा पाइत्तए वा, 4 / अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ मूलभोयणे वा जाव बीयभोयणे वा भोत्तए वा पाइत्तए वा, अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स चउबिहे अणत्थदंडे पञ्चकखाए जावज्जीवाए तंजहा-अवज्झाणयरिए पमायायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे, अम्मडस्स कप्पइ मागहए श्रद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए सेऽविय वहमाणए नो चेव णं अवहमाणए जाव सेविय परिपूए नो चेव णं अपरिपूए सेविय सावज्जेत्तिकाऊ णो चेव णं अणवज्जे, सेऽविय जीवात्तिकटु णो चेव णं अजीवा, सेऽविय दिराणे णो चेव णं अदिराणे से विय दंतहत्थ-पाय-च-चम-सपक्खालणट्टयाए पिबित्तए वा णो चेव णं सिणाइत्तए, अम्मडस्स कप्पड़ मागहए य श्राढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, सेऽविय वहमाणे जाव दिन्ने नो चेव णं अदिराणे सेविय सिणाइत्तए णा चेव णं हत्थपाय. चरुवम-सपक्खालणट्टयाए पिबित्तए वा, अम्मडस्त णो कप्पइ अन्नउत्थिया वा श्रराणउत्थियदेवयाणि वा अराणउत्थियपरिग्गहियाणि वा चेझ्याई वंदित्तए वा णमंसित्तए वा जाव पज्जुवासित्तए वा णराणस्थ अरिहंते वा अरिहंतचेइयाई वा 5 / अम्मडे णं भंते ! परिवायए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति ?, गोयमा! अम्मडे णं
SR No.004366
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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