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________________ तत्त्वसार सच शुद्धभावो भणितः प्रोक्ताः कः ? वीतरागसर्वरिति / 'पुरुषप्रामाण्याद् वचनप्रामाण्यं भवतीति न्यायात् / 'सा सुद्धा चेयणा अहवा' अथवा या शुद्धा रागादिरहिता चेतना 'चिती संज्ञाने चित् यात्, चेत्यते स्मयतेऽनया चेतना, सा चैतन्यरूपा आत्मैवेति ज्ञात्वा यत्र शुद्धभावस्तत्रैव सम्यग्दर्शनं सम्यग्ज्ञानं च, सम्यकचारित्रमपि तत्रैव, स्वात्मा चिच्चमत्कारलक्षण इति ज्ञानवद्भिः पुरुषः स एव शुद्धभावो भाव्यो भव्यर्भावनीयो भवतीति भावार्थः // 8 // इति श्री तत्त्वसारविस्तारावतारेऽस्यासन्नभव्यजनानन्दकरे भट्टारकधीकमलकोत्तिदेवविरचिते कायस्थमाथुरान्वयशिरोमणिभूतभव्यवरपुण्डरीकामरसिंहमानसारविन्ददिनकरे स्वगततत्त्व-परयततत्त्वलक्षणवर्णनं नाम प्रथमं पर्व समाप्तम् // 1 // द्वारा स्व और पर द्रव्य जाने जाते हैं, उसे ज्ञान कहते हैं। और वही चारित्र भी कहा गया है। 'चरण धातु' 'गति और भ्रमण के अर्थ वाली है। जिसके द्वारा आत्म-स्वरूपमें विचरण हो वह चरण अर्थात् चारित्र कहलाता है / इस प्रकार वह शुद्धभाव वीतराग सर्वज्ञोंने दर्शन, ज्ञान और चारित्र रूप कहा है, क्योंकि 'पुरुषकी प्रमाणता से वचनोंकी प्रमाणता होती है, ऐसा न्याय है। 'सा सुद्धा चेयणा अहवा' अथवा जो रागादि-रहित शुद्ध चेतना है वह चैतन्यरूप आत्मा ही है। क्योंकि 'चिती' धातु समीचीन ज्ञानार्थक है। जिसके द्वारा आत्मा चेतित अर्थात् स्मरण किया जाता है, वह चेतना कहलाती है। उस चेतनारूप ही आत्मा है, ऐसा जानकर अर्थात् जहां शुद्ध भाव हैं, वहीं दर्शन है, वहीं ज्ञान है और सम्यक् चारित्र भी है / इस प्रकारका चित्-चमत्कार लक्षण वाला अपना आत्मा है, ऐसा जानकर ज्ञानवान् भव्य पुरुषोंको वही शुद्धभाव निरन्तर भावना करने योग्य है, यह इस गाथाका भावार्थ है // 8 // - इस प्रकार अतिनिकट भव्यजनोंको आनन्दकारी भट्टारक श्री कमलकीर्तिदेव-विरचित, कायस्थ माथुरान्वय शिरोमणिभूत भव्यवर पुण्डरीक अमरसिंहके हृदय-कमलको दिनकरके समान तत्त्वसारके इस विस्तारावतारमें स्वगततत्त्व और परगत तत्त्वके लक्षणका वर्णन करने वाला यह प्रथम पर्व समाप्त हुआ।
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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