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________________ स्वचलता 71 यह एक रूपता मूलगत है तब बाह्य दशाओं की भिन्नता का प्रभाव दोनों पर एकसा होना चाहिये / मेढक और अन्य प्राणियों के हृदय का अध्ययन करने पर देखा गया है कि हृद ऊतक (Cardiac ti sue) की प्रतिक्रिया इस प्रकार की होती है कि स्पन्द न आरम्भ करने के लिए कुछ आन्तरिक दाब की आवश्यकता होती है। घोंघे के मूक हृदय के हृद-दाब को बढ़ाने पर स्पन्दन का नवीकरण इसका अच्छा उदाहरण है। इसी प्रकार शालपर्णी की पत्ती का स्पन्दन भी कम आंतरिक तरल स्थैतिक दाब (Hydrotatic pressure) द्वारा रुक जाता है। ऐसा वनस्पति में पानी देना बन्द करने पर होता है। सींचने पर स्पन्दन का नवीकरण हो जाता है (चित्र 42) / AAWww चित्र ४३-ईथर-वाष्प का प्रभाव / निश्चेतकों के प्रभाव से स्पन्दन रुक जाता है। ऊपर वाले चित्र में ईथर-वाष्प . (Ether Vapour) के प्रभाव से शालपर्णी के स्पन्दन का बन्द होना प्रशित है। यह स्पन्दन बहुत धीरे-धीरे बन्द हुआ। तदुपरान्त ईथर-वाष्प को तेजी से उड़ा दिया गया और वनस्पति-कक्षा में स्वच्छ वायु प्रविष्ट की गयी। पौधा प्रायः चौथाई घंटे बाद स्वस्थ हुआ और उसका स्पन्दन पुनः स्वाभाविक हो गया (चित्र 43) / विषों की विरोधी प्रतिक्रियाएं प्राणी और वनस्पति-ऊतकों के स्वतः स्पन्दनों में और भी अनेक समानताएँ हैं जिन्हें आगे किसी अध्याय में बताया जायगा। मैं यहाँ भिन्न-भिन्न भेषजों (Drugs) की कतिपय विरोधी प्रतिक्रियायों का वर्णन करूँगा / उदाहरणार्थ, विषमय अम्ल हृद्गति का अवरोध करते हैं, किन्तु यह विशेष अवरोध अनु शिथिलन-विस्तार (Diastolic expansion) में ही होता है / क्षारीय विषों द्वारा भी हृत्स्पन्दन का अवरोध होता है किन्तु इसके विपरीत तरीके से। जैसे हृत्प्रकुंचन संक्षेपन में (Systolic contraction) दोनों विषों की क्रियाएँ विरोधी हैं, यह इस तथ्य से भी प्रमाणित
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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