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________________ 70 वनस्पतियों के स्वलेख लगती हैं। सच तो यह है कि उन्हें इस प्रकार के प्रोत्साहन की आवश्यकता नहीं रहती। क्योंकि दोनों पत्तियों के जोड़ के पास का जो अति सूक्ष्म पीनाधार है, वह स्वतः अकस्मात् संकुचित हो जाता है और इसके बाद धीरे-धीरे फैलता हुआ चेतनापूर्ण हो जाता है। मैंने सफलतापूर्वक एक पर्ण की चौबीस घंटे से भी अधिक समय की निरन्तर स्पन्दित गति का अभिलेख लिया है। चार घंटे का अभिलेख चित्र 41 में दिखाया गया है। चित्र ४१--डेस्मोडियम की पत्तियों के चार इन स्पन्दनों की असाधारण एक घण्टे के स्पन्दनों का सतत अभिलेख / रूपता सचमुच ही बहुत विलक्षण है। प्राणियों और वनस्पतियों में स्वतः स्पन्दन परिभ्रामी शालपर्णी के पर्ण-स्पन्दन और प्राणी के हृत्स्पन्दन में स्पष्ट एकरूपता है। क्या यह एकरूपता केवल बाह्य है या और गहराई तक गयी है ? यदि चित्र ४२–डेस्मोडियम के स्पन्दनों पर सिंचाई और शुष्कता का प्रभाव। प्रथम श्रेणी स्वाभाविक स्पन्दन का प्रदर्शन करती है। द्वितीय, शुष्कता में रुकना। तृतीय, सिंचाई के बाद स्पन्दन का पुन हन्नयन /
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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