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________________ वनस्पति-लिपि ___ लाजवन्ती की गतियों का अध्ययन एक मनोहारी दृश्य होता है। बंगाल में इसे इस प्रकार स्पर्श से सिकुड़ने के कारण “लज्जावती युवती" कहते हैं / सब तरह की गति के कारण बच्चे इससे घंटों खेलना पसन्द करते हैं। लाजवन्ती का पूरा पर्ण हमारी समतल फैली हुई अँगुलियों वाली बाँह की तरह हैं / लम्बी वर्णनात्मक पद्धति के स्थान पर पर्ण के विभिन्न भागों के संक्षिप्त नामों को प्रयोग में लाना उपयुक्त होगा। मुख्य पर्ण डण्ठल बांह की तरह और चारों अनु-डंठल फैली हुई अँगुलियों की तरह हैं। हाथ पर आघात करिये, वह झुक जायगा और अँगुलियाँ बन्द हो जायेंगी। इसी प्रकार लाजवन्ती का पर्ण भी आघात पाकर smmm Suruwwws Mamma HOTOS WOP M USamunima M चित्र १--लाजवन्ती के विस्तृत पर्ण (बायीं ओर) और उद्दीपना के पश्चात् संकुचित पर्ण (दायों ओर)। नीचे झुक जाता है और अनु-डंठल सिकुड़ जाते हैं / अनु-डंठलों में पत्तियों के बहुत से जोड़े होते हैं जो खुद भी संवेदनयुक्त होते हैं और ऊपर को बन्द हो जाते हैं। यह गति पेड़ के विभिन्न जोड़ों पर स्थित संवेदनशील गद्दी की तरह गठित ऊतक संस्थान के संकुचन द्वारा जिसे 'पीनाधार' कहते हैं, प्राणी की मांसपेशियों की तरह सिकुड़ती हैं। पत्ती और टहनी के जोड़ पर एक बड़ा पीनाधार रहता है। मुख्य टहनी और चारों छोटे उपपन्न वृन्तों के जोड़ पर चार छोटे उप-पीनाधार होते हैं। उपपत्तियों और उपपर्णवृन्त के जोड़ पर अत्यधिक छोटे असंख्य उपपीनाधार होते हैं / .. लाजवन्ती की यह एक बहुत ही अद्भुत पर्ण-संरचना है कि उसके एक ही पर्ण में तीन स्पष्ट और भिन्न गतियाँ होती हैं / मुख्य पर्णवृन्त गिर जाता है, चारों उपपर्णवृन्त पार्श्व से घूमकर इकट्ठे हो जाते हैं; और छोटी पत्तियों के जोड़े ऊपर को
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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