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________________ अध्याय 2 वनस्पति-लिपि हमारे सम्मुख उपस्थित इन सभी पूर्ववर्ती प्रश्नों के साथ हमें इस कठिनाई का सामना करना है कि वनस्पति मूक और देखने में निष्क्रिय जन्तु प्रतीत होती है, फिर भी क्या वे हमें कुछ ऐसे संकेत नहीं दे सकतीं जिनसे हम उनका आन्तरिक इतिहास पढ़ सकें ? मूक व्यक्ति अपनी अंगुलियों द्वारा अपने भावों को व्यक्त करते हैं, अब हमें यह देखना चाहिये कि हम कैसे उनकी प्राणभूत अवस्था के विषय में कुछ सीख सकते हैं। हम एक मूक व्यक्ति की अंगुलियों पर प्रहार करते हैं; यह हुआ प्रश्नकारक आघात या उत्तेजना और अंगुलियाँ उत्तर में झटका देती हैं। लेकिन किस हद तक ? यह इस पर निर्भर करता है कि वह व्यक्ति कितना सजीव है ? यदि वह अत्यधिक सजीव है तो उसकी अंगुलियों का झटका शक्तिशाली होगा, यदि उदासीन है तो उसी आघात के बदले में हल्का झटका देगा; यदि वह मुत होगा तो आघात का कुछ भी प्रभाव नहीं होगा। कल्पना कीजिये, हमने उसकी अंगुली में एक पेंसिल बाँध दी और एक कागज उस पेंसिल के नीचे सरक रहा है, इन वणित प्रयोगों में हमें तीन प्रकार के अभिलेख प्राप्त होने चाहिये। यदि मूक व्यक्ति पूर्ण जीवित होगा तो झटके द्वारा प्रभावित रेखा लम्बी होगी; यदि खिन्न अवस्था में होगा तो उत्तर-अभिलेख छोटा होगा और मृत अवस्था में कुछ भी अभिलेख-गति न होगी। इस प्रकार रेखाओं की लम्बाई से हम मूक व्यक्ति की अवस्था का निश्चय कर सकते हैं। ____ लगभग इसी प्रकार हम परीक्षण-आघात के उत्तर में की गयी गति द्वारा पौधों की जीवन-शक्ति के विषय में जान सकेंगे। यद्यपि सभी पौधों में परिसीमित गतिशक्ति होती है तथापि किसी में भी प्राणी की शक्ति से तुलना करने योग्य ऐसी सक्रिय गति नहीं होती जैसी तथाकथित संवेदनशील पौधों में सामान्य रूप से और लाजवन्ती (Mimosa Pudica) में विशेष रूप से होती है। चित्र 1 में लाजवन्ती की एक जोड़ा पंत्तियाँ दिखायी गयी हैं। बायाँ पर्ण सामान्य फैली हुई अवस्था में है, दाहिना आघात द्वारा नीचे झुका हुआ है।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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