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________________ कुमुदिनी का रानि-बागरण 116 . रहने की सम्भावना है / ये गुरुत्व और प्रकाश की उद्दीपना के और तापमान के परिवर्तन के प्रभाव हैं। क्या गुरुत्व की उद्दीपना का पुष्प के खिलने और बन्द होने की गति पर कोई विशेष प्रभाव है ? पंखुड़ियाँ मध्याह्न में बन्द हो जाती हैं। प्रत्येक पंखुड़ी सीधी खड़ी रहती है। यदि गुरुत्व की उद्दीपना का प्रभाव पुष्प पर होता, तो पुष्प को उलटने पर उसकी बन्द पंखुड़ियाँ अपनी विपरीत स्थिति में ऊपर और बाहर की ओर खुलने लगतीं / इस प्रकार पुष्प खिल जाता / किन्तु ऐसा नहीं होता। अब हम विचार करें कि क्या प्रकाश की तीव्रता पंखुड़ियों की गति को प्रभावित करती है ? प्रकाश प्रातः आरम्भ होता है और संध्या को समाप्त होता है। यदि पंखुड़ियों की गति सर्वथा प्रकाश पर निर्भर रहती तो प्रातः और संध्या के दो विपरीत परिणाम रहते / किन्तु इन दोनों समयों में पुष्प खिला रहता है। एक बात और भी है, खुलने और बन्द होने की गति की क्रिया प्रकाश और अन्धकार के दैनिक परिवर्तन को पूरा सहयोग नही देती। इसलिए कुमुद की पंखुड़ियों की गति का प्रकाश के परिवर्तनों पर निर्भर होना आवश्यक नहीं है। कुमुद का दैनिक अभिलेख __यह दिखाया गया है कि इसकी पंखुड़ियों की गति पर गुरुत्व और प्रकाश का कोई प्रभाव नहीं है / तब फिर गति किस पर निर्भर है ? इसका निश्चय करने के लिए हमें इसकी पंखुड़ियों की गति का सतत अभिलेख लेना होगा। वे दिन में खुली रहती हैं। हम यह जानना चाहते हैं कि ठीक किस समय ये अपनी जागरण-गति का आरम्भ करती हैं; किस समय गति सबसे अधिक तीव्र होती है और कब पुष्प पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है। इस खिलने के पश्चात् एक समय आता होगा जब पंखुड़ियों की गति विपरीत होती होगी या ये बन्द होती जाती होगी। कब यह आरम्भ होता है, किस गति से यह चलता है, और कब पुष्प 'निद्रा' में अपनी पंखुड़ियों को बन्द कर लेता है ? . ' केवल तापमान की विभिन्नता ही एक अन्य ऐसा परिवर्तित तत्त्व है, जो पँखुड़ियों की गति पर संभावित प्रभाव डाल सकता है। ग्रीष्म ऋतु में छः बजे प्रातः निम्नतम तापमान होता है / इसके बाद तीव्रता से बढ़ने लगता है। प्रायः 2 बजकर 30 मिनट पर अधिकतम पर पहुंचता है। उसके बाद तापमान घटने लगता है और दूसरे दिन प्रातः निम्नतम हो जाता है। निम्नतम से अधिकतम तक बढ़ने का समय घंटे का है; किन्तु दूसरी ओर उसी भाँति घटने की अवधि 153 घंटे की होती
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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