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________________ 118 वनस्पतियों के स्वलेख बतायी जायगी। प्रकाश में दो विभिन्न वर्ग के प्रभाव हैं--सकारात्मक सूर्यावर्तन, जब अंग प्रकाश की ओर घूमता है; और नकारात्मक सूर्यावर्तन, जब अंग प्रकाश की विपरीत दिशा में घूमता है / जब उनका प्रभाव तीव्र होगा '+Lऔर-L' द्वारा बताया जायगा। जब मन्द होगा तब +1 और-1' द्वारा। जब एक क्षतिज स्कंध भू-अभिवर्तन और सूर्यावर्तन की सम्मिलित उद्दीपना. द्वारा उद्दीप्त किया जायगा तब उसका क्या प्रभाव होगा? भू-अभिवर्तन अनुक्रिया में स्कन्ध ऊपर मुड़ेगा। यदि अंग सकारात्मक सूर्यावर्ती होगा तो उदग्र प्रकाश में उसका मोड़ भी ऊपर की ओर होगा। इस प्रकार भू-अभिवर्तन और सूर्यावर्तन कार्य करेंगे और उनके सम्मिलित प्रयत्न से G+ L प्रभाव होगा। किन्तु अंग यदि नकारात्मक सूर्यावर्त है तब परिणाम G-L होगा। यदि गुरुत्वाकर्षण और प्रकाश की उद्दीपना से अंग की सम्बन्धित संवेदनशीलता पर और अधिक विचार किया जाय तो हमें निम्नलिखित सम्भावित संयोजन मिलेंगे-- G+L; G-L; G+l; G-1 g+L; g-L; G+1; g-1 , इस प्रकार केवल दो कारकों के योग से आठ भिन्न प्रभाव हो सकते हैं। और भी कारक हैं, जैसे तापमान के बढ़ने और घटने का प्रभाव / अंग के दोनों पाश्वों की विषम संवेद्यता द्वारा अधिक जटिलता होती है ; कुछ में अधिक उद्दीप्त होने वाला भाग ऊपर का होता है, कुछ में नीचे वाला और उसी के अनुसार इसकी प्रति. क्रिया अधिक प्रभावी होती है। इस प्रकार कम से कम दस कारक कार्यशील हैं, और इनके विभिन्न सम्भव संयोजन एक सहस्र से अधिक होंगे। ___ वनस्पति की गतियाँ इतनी असाधारण एवं जटिल हों, इसमें कोई आश्चर्य नहीं। काफी दिनों से इसका यथार्थ स्पष्टीकरण प्राप्त करने में निराश होना पड़ रहा है, जिसका कारण यह है कि अब तक इन कारकों के प्रभावों को अलग कर उनके जटिल परिणाम का विश्लेषण करना सम्भव नहीं हो सका है। . निरसन-प्रक्रिया मैंने कहा है कि विभिन्न संयोजनों के विभिन्न सम्भव परिणामों की भिन्नताएँ एक सहस्र से अधिक होंगी। उन सबका एक के बाद एक अध्ययन किया जाय तो शायद अकस्मात उनमें से किसी एक समस्या विषेश का हल निकल आये, किन्तु जीवन इतना दीर्घ नहीं है। फिर भी, यह सम्भव है कि सामान्य प्रारम्भिक परीक्षाओं द्वारा अप्रभावी कारकों का निरसन कर दिया जाय / इस प्रकार जाँच को सीमित किया जा सकता है / अब हम उन विभिन्न कारकों पर विचार करेंगे जिनके बने
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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