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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 330 क्षीणेऽपि मोहनीयाख्ये कर्मणि प्रथमक्षणे। यथा क्षीणकषायस्य शक्तिरन्त्यक्षणे मता // 89 // ज्ञानावृत्यादिकर्माणि हन्तुं तद्वदयोगिनः / पर्यन्तक्षण एव स्याच्छेषकर्मक्षयेऽप्यसौ // 10 // कर्मनिर्जरणशक्तिीवस्य सम्यग्दर्शने सम्यग्ज्ञाने सम्यक्चारित्रे चान्तर्भवेत्ततोन्या वा स्यात् / तत्र न तावत् सम्यग्दर्शने ज्ञानावरणादिकर्मप्रकृतिचतुर्दशक निर्जरणशक्तिरन्तर्भवत्यसंयतसम्यग्दृष्ट्याद्यप्रमत्तपर्यंतगुणस्थानेष्वन्यतमगुणस्थाने दर्शनमोहक्षयात्तदाविर्भावप्रसक्तेः। ज्ञाने सान्तर्भवतीति चायुक्तं, क्षायिके नैतदन्तर्भावे सयोगिके वलिनः केवलेन सहाविर्भावापत्तेः। क्षायोपशमिके तदन्तर्भावे तेन सहोत्यादप्रसक्तेः / क्षायोपशमिके चारित्रे.तदन्तर्भावे अघातिया कर्मों की निर्जरा करने में समर्थ चारित्र १४वें गुणस्थान के अन्त समय में जिस प्रकार क्षीणकषाय नामक गुणस्थान के प्रथम क्षण में ही मोहनीय कर्म के क्षय हो जाने पर भी ज्ञानावरणादि तीन घातिया कर्मों के क्षय करने की शक्ति उस गुणस्थान के अन्त समय में उत्पन्न होती है, उसी प्रकार तीन अघातिया कर्मों का नाश करने में समर्थ चारित्र अयोगकेवली के चौदहवें गुणस्थान के अन्त समय में उत्पन्न होता है।।८९-९० // जीव की कर्मों को निर्जरण करने की शक्ति सम्यग्दर्शन में अन्तर्भूत होती है कि सम्यग्ज्ञान में वा सम्यक्चारित्र में वा जीव के और किन्हीं अन्य गुणों में? ज्ञानावरणादि 14 प्रकृतियों (पाँच ज्ञानावरण, पाँच अन्तराय, चार दर्शनावरण) के निर्जरण करने की जीव की शक्ति सम्यग्दर्शन में तो अन्तर्भूत नहीं हो सकती क्योंकि असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अप्रमत्त गुणस्थान तक किसी भी गुणस्थान में दर्शन मोहनीय के क्षय से क्षायिक सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति हो जाने से उसी समय चारित्र की पूर्णता का प्रसंग आयेगा। सम्यग्ज्ञान में तीन अघातिया कर्मप्रकृतियों के नाश करने की शक्ति का अन्तर्भाव होता है, ऐसा भी नहीं कह सकते क्योंकि क्षायिकज्ञान में उस शक्ति का अन्तर्भाव हो जाने पर सयोगकेवली के केवलज्ञान के साथ चारित्र की पूर्णता होकर मुक्ति की प्राप्ति का प्रसंग आयेगा। यदि क्षायोपशमिक ज्ञान में उस शक्ति का अन्तर्भाव करते हैं तो उन मति श्रुत आदि क्षायोपशमिक ज्ञान के साथ ही कर्म-निर्जरण करने की जीव की शक्ति के उत्पाद का प्रसंग आयेगा। यदि उस कर्म-निर्जरण करने की शक्ति का क्षायोपशमिक चारित्र में अन्तर्भाव करेंगे तब तो छठे-सातवें गुणस्थान में होने वाले क्षायोपशमिक चारित्र की उत्पत्ति के साथ ही उस शक्ति के उत्पाद का प्रसंग आयेगा। यदि क्षायिक चारित्र में उस शक्ति को अन्तर्भूत करेंगे तो उस शक्ति के प्रगट हो
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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