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________________ समाधिमरणेतर प्रकीर्णकों की विषयवस्तु : 57 गया है कि वहाँ नानामणिरत्नों से रचित मनुष्यों, मगरों, विहगों और व्यालों की आकृतियाँ शोभायमान हैं, जो सर्वरत्नमय, आश्चर्य उत्पन्न करने वाली तथा अवर्णनीय हैं / 5 ग्रन्थ में उल्लेख है कि अंजन पर्वतों के एक लाख योजन अपान्तराल को छोड़ने के बाद चार पुष्करिणियाँ हैं, जो एक लाख योजन विस्तीर्ण तथा एक हजार योजन गहरी हैं / ये पुष्करिणियाँ स्वच्छ जल से भरी हुई हैं / इन पुष्करिणियों की चारों दिशाओं में चैत्यवृक्षों से युक्त चार वनखण्ड बललाए गए हैं / 6 पष्करिणियों के मध्य में रत्नमय दधिमख पर्वत कहे गए हैं / दधिमुख पर्वतों की ऊँचाई एवं परिधि की चर्चा करते हुए उन पर्वतों को शंख समूह की तरह विशुद्ध, अच्छे जमे हुए दही के समान निर्मल, गाय के दूध की तरह उज्जवल एवं माला के समान क्रमबद्ध बतलाया है / इन पर्वतों के ऊपर भी गगनचुम्बी जिनमंदिर अवस्थित हैं, ऐसा उल्लेख हुआ है। ___ ग्रन्थ में अंजन पर्वतों की पुष्करिणियों का उल्लेख करते हुए दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा वाले अंजन पर्वतों की चारों दिशाओं में स्थित चार-चार पुष्करिणियों के नाम बललाए गए हैं। ग्रन्थानुसार नन्दीश्वर द्वीप में इक्यासी करोड़ इक्कानवें लाख पिच्चानवें हजार योजन अवगाहना करने पर रतिकर पर्वत हैं / इन रतिकर पर्वतों की ऊँचाई, विस्तार, परिधि आदि का परिमाण बतलाते हुए पूर्व-दक्षिण, पश्चिम-दक्षिण, पश्चिम-उत्तर, तथा पूर्व-उत्तर : दिशा में स्थित रतिकर पर्वतों की चारों दिशाओं में एक लाख योजन विस्तीर्ण तथा तीन लाख योजन परिधि वाली चार-चार राजधानियों को पूर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से चारों दिशाओं में स्थित माना है। इसके पश्चात् कुण्डल द्वीप, कुण्डल पर्वत के ऊपर स्थित शिखरों, शिखरों पर स्थित देवों, उनकी अग्रमहिषियों तथा उनकी राजधानियों एवं रूचक पर्वत के शिखरों पर स्थित देवों, दिशाकुमारियों आदि की विस्तृत चर्चा की गई है / 1deg ग्रन्थ में उल्लेख है कि रुचक पर्वत के बाहर आठ लाख चौरासी हजार योजन चलने पर रतिकर पर्वत आते हैं। . जम्बूद्वीप आदि द्वीप-समुद्रों तथा मानुषोत्तर पर्वत पर दो-दो, एवं रुचक पर्वत पर तीन अधिपति देव माने हैं / इनके पश्चात् स्थित अन्य द्वीप-समुद्रों में उनके समान नाम वाले अधिपति देव माने गये हैं / पुनः यह भी कहा गया है कि एक समान नाम वाले असंख्य देव होते हैं / वासों, द्रहों, वर्षधर पर्वतों, महानदियों, द्वीपों और समुद्रों के अधिपति देव एक पल्योपम कायस्थिति वाले कहे गए हैं। आगे यह भी उल्लिखित है कि द्वीपाधिपति देवों की उत्पत्ति द्वीप के मध्य में तथा समुद्राधिपति देवों की उत्पत्ति विशेष क्रीड़ा-द्वीपों में होती है।११ ग्रन्थानुसार रुचक समुद्र में असंख्यात द्वीप-समुद्र हैं / रुचक समुद्र में पहले अरुण द्वीप और उसके बाद अरुण समुद्र आता है / अरुण समुद्र में दक्षिण दिशा की ओर तिगिञ्छि पर्वत माना गया है / तिगिछि पर्वत का विस्तार एवं परिधि बतलाने के उपरान्त
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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