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________________ 56 : डॉ. अशोक कुमार सिंह एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया जन्म-मरण का मूल है / अतः इच्छाओं पर विजय प्राप्त करनी चाहिए / वस्तुतः इच्छा रहित होना ही सुख का मूल है।४८ इन्द्रनाग नामक इकतालीसवें अध्याय में इन्द्रनाग ऋषि के उपदेश संकलित हैं / प्रस्तुत अध्याय में वे कहते हैं कि आजीविका के लिए किया जाने वाला तप तथा सुकृत निरर्थक है / मुनि वेश को आजीविका का साधना नहीं बनाना चाहिये / मुनि को विद्या, तंत्रमंत्र. दूत-कर्म, भविष्य फल कथन आदि से आजीविका प्राप्त नहीं करनी चाहिए।४९ वस्तुतः इनके उपदेश संयम की ही साधना का निरूपण करते हैं / ' प्रस्तुत ग्रन्थ के बयालसवें, तैंतालीसवें और चौवालीसवें अध्याय में क्रमशः सोम, यम और वरुण ऋषि के उपदेशों का अतिसंक्षेप में निरूपण हुआ है। सोम ऋषि का उपदेश है कि साधक ज्येष्ठ, मध्यम या कनिष्ठ किसी भी पद पर हो, वह अल्प से अधिक प्राप्त करने का प्रयत्न करे / 50 यम ऋषि का उपदेश है कि जो साधक लाभ में प्रसत्र और अलाभ में कुपित नही होता है, वही श्रेष्ठ है / 51 वरुण ऋषि कहते हैं कि जो राग-द्वेष से अप्रभावित रहता है वही सम्यक् निश्चय कर पाता है / 52 ग्रन्थ के अन्तिम पैंतालीसवें अध्याय में वैश्रमण ऋषि के उपदेशों का संकलन है। इसमें सर्वप्रथम काम के निवारण तथा पाप कर्म नहीं करने की प्रेरणा दी गई है / तत्पश्चात अहिंसा के महत्त्व को प्रस्तुत कर उसके पालन का निर्देश किया गया है / 53 (6) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रस्तुत प्रकीर्णक में कुल 225 गाथाएँ हैं / सभी गाथाएँ मध्यलोक में मनुष्य क्षेत्र अर्थात् ढाई-द्वीप के आगे के द्वीप एवं सागरों की संरचना को प्रकट करती हैं / इस ग्रन्थ में निम्न विवरण उपलब्ध होता है ग्रन्थ के प्रारम्भ में किसी प्रकार का मंगल अथवा किसी की स्तुति आदि नहीं करके ग्रन्धकर्ता ने सीधे विषयवस्तु का ही स्पर्श किया है / ग्रन्थ का प्रारम्भ मानुषोत्तर पर्वत के विवरणसे किया गया है / मानुषोत्तर पर्वत के स्वरूप को बतलाते हुए इसकी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, जमीन में गहराई तथा इसके ऊपर विभित्र दिशा-विदिशाओं में स्थित शिखरों के नाम एवं विस्तार परिमाण का विवेचन किया गया है। तत्पश्चात् नलिनोदक सागर, सुरारस सागर, क्षीरजलसागर, घृतसागर तथा क्षोदरससागर में गोतीर्थ से रहित विशेष क्षेत्रों का तथा नन्दीश्वर द्वीप का विस्तार परिमाण निरूपित है / अंजन पर्वत और उसके ऊपर स्थित जिनमंदिरों का वर्णन करते हुए अंजन पर्वतों की ऊँचाई, जमीन में गहराई, अधोभाग, मध्यभाग तथा शिखर-तल पर उसकी परिधि और विस्तार बतलाया गया है साथ ही यह भी कहा है कि सुन्दर भौरों, काजल और अंजन के समान कृष्णवर्ण वाले वे अंजन पर्वत गगनतल को छूते हुए शोभायमाम हैं। तत्पश्चात् जिनमन्दिरों की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई का परिमाण बतलाने के साथ यह भी कहा
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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