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________________ 30 : डॉ० अशोक कुमार सिंह के लिए उत्सुक अपनी सन्तान को अनुमति, प्रव्रज्या-उत्सव करना, जीर्ण जिनालयों का उद्धार, पौषधशाला का निर्माण, परिग्रह की मर्यादा निश्चित करना, उचित दान देना, शास्त्र सम्मत विविध तप करन., तप का उद्यापन करना, जिनपूजा, जिनप्रतिमा के लिए आभूषण बनवाना, दोनों सामायिक करना, पर्वतिथि पर पौषधवास, गरीब, अनाथ, कठिनाई पूर्वक जीवन व्यतीत करने वाले जनों का उद्धार, धार्मिक लोगों का वात्सल्यकरण, ग्लान साधु सेवा, देवगुरु भक्ति, धर्मश्रवण आदि / 14 बीसवें 'जीवक्षमणाद्वार' में क्षपकद्वारा चारों गतियों के जीवों के प्रति किये गये अपराधों की क्षमापना, इक्कीसवें 'स्वजन क्षमणाद्वार' में आत्मीयजनों जैसे माता-पिता, मित्र, भगिनी, पुत्री, भार्या, पति, बहन (स्नुषा) सासश्वसुर, बान्धव, सम्बन्धी, आदि के प्रति इस लोक और परलोक कृत अपराधों की क्षेपक द्वारा की गई क्षमापना का विस्तार से वर्णन है / 15 ___ बाईसवें 'संघ क्षमणाद्वार' में साधु, साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ के प्रति किये गये अपराधों की क्षपक कृत क्षमापना, इसमें प्रसंगवश संघ का स्वरूप, संघ के बहुमान से मोक्ष पर्यन्त विविध सुखों की प्राप्ति का निरूपण है / तेईसवें 'जिनवरादि क्षमणाद्वार' में भरत-ऐरावत, विदेहक्षेत्र तीनों कालों के गणधरों सहित और संघ सहित तीर्थंकरों के प्रति किये गये अपराधों की क्षपक द्वारा क्षमापना वर्णित है / 16 चौबीसवें आशातना प्रतिक्रमणद्वार' में 33 आशातना दोषों का प्रतिक्रमण, 19 आशातना दोषों का प्रतिक्रमण, सूत्र विषयक 14 आशातना दोषों का प्रतिक्रमण निरूपित है / 17 पच्चीसवें 'कायोत्सर्गद्वार' में क्षपक की आराधना के विघ्न रहित होने के लिए कायोत्सर्ग विधान का निरूपण तथा छब्बीसवें 'शक्रस्तवद्वार' में क्षपक द्वारा शक्रस्तव का पाठ है / 18 सत्ताइसवें 'पापस्थान व्युत्सर्जनद्वार' में अठारह पाप स्थानों के त्याग का निरूपण, अठारह पाप स्थान के त्याग के सम्बन्ध में 18 दृष्टान्तो का निरूपण, अट्ठाइसवें अनशनवार' में साकारनिराकार के त्यागपूर्वक क्षपक द्वारा अनशन.ग्रहण का विस्तार से निरूपण है / 19 उन्तीसवें अनुशिष्टिद्वार' में अनुशिष्टि के 17 प्रतिद्वारों का वर्णन है / 2deg प्रथम मिथ्यात्व परित्याग' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में मिथ्यात्व का दोष बताते हुए मिथ्यात्व को त्यागने का निर्देश है / द्वितीय 'सम्यक्त्व सेवनानुशिष्टिद्वार' में सम्यक्त्व के प्रभाव का निरूपण है तथा तीसरे 'स्वाध्याय' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में पंचविध स्वाध्याय के करण, मोक्ष के अंग के रूप में स्वाध्याय का माहात्म्य, उत्कृष्टादि स्वाध्याय का निरूपण, स्वाध्याय का फल एवं चौथे पंचमहाव्रत रक्षा अनुशिष्टि प्रतिद्वार में पंचमहाव्रत रक्षा सम्बन्धी उपदेशों का प्रतिपादन है / 21 पंचम ' मदनिग्रह' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में जाति, कल, बल, रूप, तप, ऐश्वर्य, श्रत और लाभ मद के त्याग का निर्देश, विविध मदों के दोषों का वक्तव्य और जाति आदि 8 मदों के सम्बन्ध में दृष्टान्तों का निर्देश, छठवें 'इन्द्रिय विजय' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में इन्द्रिय पर विजय प्राप्त न करने वाले के दोष और इन्द्रिय निग्रह के गुणों का वर्णन है / इन्द्रिय पर विजय प्राप्त करने सम्बन्धी 5 दृष्टान्त भी दिये गये हैं / 22 सप्तम कषाय विजय' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में कषाय त्याग का निरूपण, कषाय के भेद-प्रभेद कधन, क्रोध के दोषों का कथन करते हुए उसके त्याग, क्षमा की प्रधानता, क्रोध के दोष और क्षमा में दो दृष्टान्तों का निर्देश,
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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