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________________ 228 : डॉ० रज्जन कुमार की उत्पत्ति होती है / जहाँ तक नपुंसक शिशु की उत्पत्ति की बात है तो इस संबंध में जीववैज्ञानिकों की धारणा तदुलवैचारिक की तरह स्पष्ट नहीं है / वे नपुंसकता का कारण बहुत तरह के हारमोन्स तथा कुछ अन्य विकृतियों को मानते हैं। इसप्रकार तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक में वर्णित शरीर- विज्ञान सम्बन्धी कुछ अवधारणाओं पर विचार करने के पश्चात हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आधुनिक जीव विज्ञान की मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य में हमारी प्राचीन मान्यताएँ किसी भी रूप में कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं / प्राचीन ग्रन्थों में कुछ विषयों का विवेचन मात्र अनुमान के आधार पर अवश्य किया जाता था, परन्तु उस अनुमान में भी गूढ रहस्यों की तह तक पहुँचने का एक सुगम साधन छिपा रहता था / गर्भ विषयक जो मान्यताएँ हमें तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक में / मिलती हैं वे इसका साक्षात् प्रतिरूप हैं / नारी-पुरुष जननांगों का विवरण, नर-मादा लिंग के निर्धारण का जो विवरण इस प्रकीर्णक ग्रन्थ में मिलता है वह आधुनिक विज्ञान में प्रतिपादित सिद्धान्तों के प्रायः अनुरुप ही है / अतः आधुनिक विज्ञान और प्राचीन ग्रंथों में प्रतिपादित सिद्धांतों का तुलनात्मक अध्ययन अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं अपेक्षित है / इससे हमें अध्यात्म और विज्ञान के बीच समन्वय स्थापित करने में सुविधा रहेगी तथा यह वर्तमान काल की मांग भी है। सन्दर्भ-सूची तंदुलवेयालियं, देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्वार, ग्रन्थांक-५९, पृ० -35 वही, पृ० -16, 35 मेहनम खरता दारध्यं सौन्दर्य समश्रुधृष्टता स्वीकामितेति लिंगानि, सप्त पुंस्तवे प्रकष्टति / वही, पृ०६ पिउसुक्क..... तदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रका० आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, 1991, गाथा 17 शरीर क्रिया विज्ञान, पाण्डेय एवं वर्मा, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, चतुर्थ संस्करण, 1992, पृ०५१५ तंदुलवेयालियं, पृ०-३ इत्थीए नाभिहेट्ठा सिरादुगं पुप्फनालियागारं / / -तंदलवैचारिक, 19. तस्स य हेट्ठा जोणी अहोमुहा संठिया कोसा / / -वही., 9 कोसायारं जोणी संपत्ता सुक्कमीसिया जइया। तइया जीवुववाए जोग्गा भणिया जिणिंदेहि।। - वही, 11 शरीर क्रिया विज्ञान, पृ०५२१ जं से माया नाणाविहाओ रस विगईओ...दव्वाइं आहारेई तओ एगदेसेणं ओयमाहारेई / -तंदुलवैचारिक, 22
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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