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________________ तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक और आधुनिक जीव विज्ञान : एक तुलना : 227 आठ माह तक वह एक शिशु की तरह दिखाई पड़ने लगता है / नौवें माह के अंत में शिशु जन्म लेता है / 16 शिशु-जन्म एक जटिल प्रक्रिया है / शिशुगर्भोदयक थैली में भरे उल्वकोषीय द्रव्य में उपलाता रहता है / प्रसवपीड़ा के समय यह थैली फट जाती है और तरल द्रव्य योनि से बाहर निकलने लगता है / गर्भाशय-पेशी के संकुचन से भ्रूण धीरे-धीरे बाहर निकलने लगता है जिसे भ्रूण प्रसव वेदना (Labour Pain) कहते हैं / बाहर निकलने पर शिशु नाभिनाल द्वारा अपरा से जुड़ा रहता है। जन्म लेने के पश्चात् नाभिनाल काट दिया जाता है। नाभिनाल कटने से शिशु का माता से दैहिक सम्बन्ध छूट जाता है / कटे हुए दोनों छोरों को इस प्रकार बाँध दिया जाता है ताकि स्त्राव नहीं होने पाए / प्रसव के कुछ समय बाद अपरा गर्भोदयक थैली तथा गर्भनाल योनि मार्ग से बाहर निकल जाते हैं / 17 ___तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक में यह स्पष्ट किया गया है कि गर्भ में पल रहे जीव के अंगों का निर्माण माता-पिता से प्राप्त शुक्र और रज से होता है / भ्रूण के मांस, रक्त और मस्तकये तीन अंग मातृ अंग कहे जाते हैं जबकि अस्थि, मज्जा, केश, दाढ़ी, मूंछ, रोम एवं नख पिता के अंग हैं / 18 लेकिन आधुनिक जीवविज्ञान में जीव के अंगों के निर्माण का ऐसा स्पष्ट विवेचन नहीं मिलता है / यहाँ अंगों का निर्माण जननिक स्तर-बहिर्जन स्तर, मध्यजन स्तर तथा अंतर्जन स्तर द्वारा होना माना गया है / त्वचा, बाल तथा समस्त तंत्रिका तंत्र बहिर्जन स्तर से विकसित होते हैं / अस्थियाँ, पेशी, रक्त-वाहिकाएँ, मूत्रजननांग मध्यजन स्तर से निकलते हैं / आंत और उससे संबंधित अंग, यकृत तथा अग्न्याशय अंतर्जन स्तर से बनते हैं / 19 भ्रूण का यह जननिक स्तर अण्ड और शुक्राणु के सम्मिलित रूप से बनता है क्योंकि भ्रूण का निर्माण निषेचित अंड से होता है और निषेचण का अर्थ होता है-शुक्र और अण्ड का मिलना। :: नर, मादा और नपुंसक जीव की उत्पत्ति के संबंध में तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक में इस प्रकार का उल्लेख मिलता है- 'शुक्र अल्प और ओज अधिक होता है तो स्त्री की उत्पत्ति होती है जब ओज कम और शुक्र अधिक होता है तो पुरुष की उत्पत्ति होती है / जब ओज और शुक्र दोनों की मात्रा समान होती है तो नपुंसक जीव की उत्पत्ति होती है। 2deg लिंग निर्धारण की यह विधि आधुनिक जीव विज्ञान सम्मत जान पड़ती है विशेषकर नर और मादा के संदर्भ में / मनुष्य अथवा इस समूह से संबंधित प्राणी में लिंग निर्धारण क्रोमोसोम की सहायता से किया जाता है / जीवों में टो तरह के क्रोमोसोम पाए जाते हैं x और Y / x क्रोमोसोम मादालिंग और Y क्रोमोसोम नरलिंग का सूचक है / लेकिन हमें यहाँ यह याद रखना होगा कि क्रोमोसोम जोड़े में पाए जाते हैं। . निषेचण के फलस्वरुप डिम्ब के एक x क्रोमोसोम तथा शुक्र के एक x क्रोमोसोम मिलते हैं तो इनसे जो भ्रूण विकसित होगा वह xx क्रोमोसोम से युक्त होगा और शिशु का लिंग मादा होगा। इसी तरह अगर भ्रूण XY क्रोमोसोम से युक्त होगा तो वह नर होगा। Y क्रोमोसोम को नर क्रोमोसोम के रूप में जाना जाता है / 2 1 अतः यहाँ यह तथ्य भलीभाँति प्रयुक्त होता है कि यदि ओज अधिक हो तो मादा शिशु तथा शुक्र अधिक हो तो पुरुष शिशु
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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