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________________ 182 : डॉ० हुकमचन्द जैन तो वह कर्मों का क्षय कर लेता है / 11 अभिज्ञान शाकुन्तलम् में विनय का महत्त्व बतलाते हुए कहा गया है- 'भवन्ति नम्रास्तारवः फलोद्गमैः / 12 अर्थात् फल के आने पर वृक्ष झुक जाते हैं / उसीप्रकार विनयरूपी फल के आने पर व्यक्ति में मानवीय गुणों का विकास होता है और वह विनम्र हो जाता है / त्रिपिटक ग्रन्थों में विनय पिटक नामक अध्याय में भगवान बुद्ध ने विस्तार पूर्वक विनय के महत्त्व को समझाया है / उत्तराध्ययनसूत्र में विनीत शिष्य का गुरु के प्रति क्या कर्तव्य है, गुरु के साथ उसे कैसा व्यवहार करना चाहिए तथा अपने विनयपनसे क्रोधी से क्रोधी गुरु को भी वह कैसे शान्त कर देता है, यह सब विस्तार पूर्वक समझाया गया है / 13 वसुनन्दिश्रावकाचार में विनय के महत्त्व को बतलाते हुए कहा है-हे साधक ! पाँच प्रकार के विनय का मन, वचन एवं काया-तीनों प्रकार से पालन करो, क्योंकि विनय रहित सुविहित मुक्ति को प्राप्त नहीं कर सकते हैं / 14. मूलाचार में भी ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप तथा आचार-ये पांच प्रकार के विनय मोक्षगति के नायक कहे गये हैं।१५ मोक्ष मार्ग में विनय का स्थान विनय का अध्ययन, अध्यापन, आचरण आदि के पीछे व्यक्ति का मोक्ष प्रप्ति एक मुख्य उद्देश्य रहा है / भगवती आराधना एवं मूलाचार में कहा गया है कि विनयहीन पुरुष का शास्त्र पढ़ना निष्फल है क्योंकि शास्त्र पढ़ने का फल विनय है और विनय का फल मोक्ष मिलना है / ज्ञान लाभ, आचारशुद्धि और सम्यक् आराधना आदि की सिद्धि विनय से होती है / मोक्ष सुख अन्ततः विनय से ही प्राप्त होता है / अतः व्यक्ति को अपने में विनय-भाव सदैव रखना चाहिए। चन्द्रवेध्यक प्रकीर्णक एवं अन्य ग्रन्थों में निरूपित विनय के महत्त्व से यह ज्ञात होता है कि विनयगुण अहिंसा, समता, कषाय शमन में सहायक है तथा पर्यावरण संरक्षण, विश्व शांति, लोककल्याण का प्रेरक एवं मोक्ष का हेतु भी है / सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र आदि की ओर अग्रसर होने के लिए व्यक्ति में विनयगुण का होना नितान्त आवश्यक है। विनयगुण कालान्तर में एक वाद के रूप में स्थापित हो गया और यह विनयवाद कहलाया। जैनविद्या के बहुश्रुत विद्वान डॉ० जगदीश चन्द्र जैन अपनी कृति 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज' में विनयवाद का उल्लेख करते हुए कहते हैं-'जैनसूत्रों में चार प्रकार की मिध्यादृष्टियों का उल्लेख है-१. क्रियावादी, 2. अक्रियावादी, 3. अज्ञानवादी और 4. विनयवादी। 16 वहाँ विनयवादियों ने बाह्य क्रियाओं के स्थान पर मोक्ष प्राप्ति के लिए विनय को आवश्यक माना है / 17 अतः विनयवादी सुर, नृपति, यति, हाथी, घोड़े, गाय, भैंस, बकरी, गीदड़, कौआ और बगुले आदि को देखकर उन्हें प्रणाम करते हैं / 18 औपपातिकसूत्र, ज्ञाताधर्मकथा आदि में विनयवादियों को अविरुद्ध भी कहा गया है / 19 इस प्रकार विनय एक तप है, आचार है जो क्रियाओं में शुद्धि लाता है / इससे व्यक्ति अहिंसक बनता है / इससे ही व्यक्ति कर्म निर्जराकर महान तपस्वी, समतावादी एवं निर्मोही बनकर संसार-सागर को पार करने में सफल हो सकता है / निष्कर्ष रूप में हम यही कहना चाहेंगे कि चन्द्रवेध्यक में प्रतिपादित विनयगुण को जीवन में आत्मसात कर व्यक्ति अपना जीवन सफल बना सकता है /
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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